सुबह की रोशनी अचानक से धुंधला गई ।
क्योंकि आकाश मे घनघोर काले बादलों की
घटायें छा गई।
ऐसा लगा दिन की रोशनी, कहीं खो गई।
दोपहर के समय मे ही, चादर तान कर सो गई।
बाहर से आती हुई रोशनी की
कमी ने समझा दिया।
बाहर निकल कर देखते हैं ,शायद काले बादलों
ने सूरज को छुपा दिया।
यही देखने के लिए घर से बाहर हो ली।
बाहर निकलकर ठंडी हवा की बयारों और
भीगी हुई मिट्टी की खुशबू मे खो गई।
देखते ही देखते आकाश मे ,चमकीली बिजली कड़की।
पता नही क्यूँ बड़ी जोर से अकड़ी।
मिल गया बयारों को नन्ही नन्ही बूँदों का साथ।
क्योंकि शुरू हो गई थी बरसात।
दिखने लगी वनस्पतियाँ साफ साफ।
बाहर बँधे हुए तार को ,मै ध्यान से देख रहीं थी।
देखते-देखते विचारों के साथ, खेल रहीं थी।
तार के ऊपर पानी की बूँदों की
रेलमपेल मची हुई थी।
बूँदें तार के ऊपर, भागादौड़ी कर रहीं थी।
कोई बूँद जल्दी से ,नीचे गिर रही थी।
तो कोई नीचे गिरने से पहले, सँभल रहीं थी।
बारिश की बूँदें तार पर, रेलगाड़ी जैसे भाग रही थी।
आगे निकलने के चक्कर मे, कभी रास्ता बदल रहीं थी ।
थीं तो कभी, धक्कमधुक्की लगा रहीं थी…..
इन बूँदों को बारिश के समय ,ऊर्जा से भरी देखकर
छोटे छोटे बच्चे याद आ गये।
उनके हँसते खिलखिलाते हुए चेहरे।
बूँदों के बीच मे से अपनी झलक दिखला गये।
गरजते हुए बादल हो ,या चमकती हुई बिजली।
इन चमकीली बूँदों के उत्साह मे, कहीं कोई कमी नही।