दैनिक जरूरतों के इरादे से घर से
बाहर निकलते ही कानों को
सुनायी पड़ा शोर…..
नज़रें आवाज की दिशा मे फिर गयी…..
कलाबाजी दिखाने की तैयारी करती हुई
नन्ही सी बच्ची दिख गयी……
दिख गया नटों का एक परिवार ……
जिनके लिये कलाबाजियाँ दिखाना
मनोरंजन के साथ-साथ है व्यवसाय…..
बाँसों की सहायता से रस्सी का
एक पुल देखते ही देखते तैयार हो गया……
बच्ची के संरक्षको ने रस्सी की
मजबूती को जल्दी से परख लिया…..
तैयार पुल को देखकर नन्ही सी बच्ची का
चेहरा हर्ष के साथ खिल गया…..
बच्ची कलाबाजियाँ दिखाने के लिए
उल्लास के साथ जुट गयी…..
इसके जरिये अपने परिवार की भूख को
शांत करने के उद्देश्य से जुड़ गयी…..
कलाबाजियों को पारंगत खिलाड़ियों की तरह
से दिखा रही थी……
पतली सी रस्सी पर चलते हुए अपने जीवन को
दाँव पर लगा रही थी…….
आँखें उसकी अपने करतब के साथ-साथ
दर्शको की तरफ भी टिकी हुई थी …..
क्यूँकि करतब दिखाने के एवज मे प्रोत्साहन के
साथ-साथ रुपयों की भी आस जगी थी ….
सोच मे पड़ गया मेरा दिमाग…..
पीढ़ी दर पीढ़ी ही तो करता है
नटों का परिवार यह काम…
गरीबी और अशिक्षा के साथ-साथ
इनका घुमंतू”स्वभाव इनके बच्चों के लिये
असुरक्षित सा होता है…..
क्योंकि इनके लिये शिक्षा, स्वास्थय और सुरक्षा
एक सपना होता है…..
शायद इसीलिए इनका पारंपरिक काम ही
इनके लिये सर्वोपरि होता है…..
बहुत अनोखी और शानदार इनकी कला होती है
जरूरत हमेशा इनके संरक्षण की होती है….
कला और संस्कृति को सहेजने वालों की आँखों से
इस तरह के हुनर कैसे छिप जाते हैं ….
क्या हमारे समाज ने इनको इनके हुनर के
साथ दीन हीन रूप मे ही अपना लिया ….
कलाओं के संरक्षण के साथ-साथ जरूरत
बचपन को बचाने की भी है…..
समय वर्तमान का हो या भविष्य का हो…..
किसी भी तरह से इन्हें सम्मान के साथ
जीवन जीना सिखाने की है…..