December 3, 2016
मनुष्य जीवन अद्भुत है ये हम सभी जानते हैं …. हर मनुष्य का अपना विशेष स्वभाव होता है…कोई भी व्यक्ति परिपूर्ण नही होता है….अच्छाई और बुराई की मात्रा कम या ज्यादा , हर किसी के अंदर होती है….
किसी के स्वभाव की सहनशीलता और विनम्रता ज्यादा दिखती है तो ,किसी के स्वभाव की अधीरता और अभिमान ज्यादा दिखता है… किसी की अच्छाईयाँ छिप जाती हैं तो, किसी की बुराइयाँ छिप जाती हैं ….लेकिन जीवन चलता रहता है ….
ये सारी बातें हमे रोजाना के जीवन मे देखने को मिलता है….बस ध्यान देने वाली बात ये होनी चाहिये की, हमारे या आपके स्वभाव की Negativity के कारण कहीं आप किसी का , जाने-अनजाने मे नुकसान तो नहीं कर रहे हैं..
किसी भी व्यक्ति का स्वभाव public place मे जाकर ज्यादा दिखता है …. जब हम कहीं कतार मे खड़े होकर संघर्ष करते हैं…
बात उस समय की है जब हमारे देश ने, नोटबंदी को अचानक से सामने देखा था…
आम जनता ने नई करेंसी के चक्कर में घंटों , बैंकों के बाहर कतारों में संघर्ष किया था…पांच सौ और हजार की पुरानी नोटों ने, बैंक की तरफ का रुख किया था……उस समय हमारे देश मे लोगो का, बैंको के चक्कर काटना आम सा हो गया था ….
अगर आप का मन न करे तब भी, अपने आप को धक्का मारकर बैंक जाना ही पड़ता है …कभी ATM की line मे लगने के लिये कभी deposit या अन्य काम के लिये.. घंटो line मे खड़े होने के बाद आखिरकार हमारा नंबर भी आ ही जाता है और हम…. विजयी मुद्रा मे बाहर निकलते हैं ….बाहर निकलते हुये मन अचानक से कुछ कहने लगता है …….
चलो खत्म हुआ संघर्ष हमारा …
हो गया प्रयत्न संपूर्ण हमारा …पीछे वाले आ जाओ आगे …
अब आ गयी तुम्हारी बारी …क्यूँ हो इतने उद्वेग से भरे …
रुक जाओ न थोड़ी सी देर भले …
दिखा सकते हो थोड़ा सा तो धैर्य …
है नहीं किसी का किसी से कोई बैर …
बैंक का काम खत्म करने के बाद, bill जमा करने के लिये मै kiosk machine की line मे खड़ी हुयी …. हे भगवान! कितनी चटोरी मशीन होती है…. तीन घंटे line मे खड़े होने के बाद मिले पैसो को चट करने मे उसे, तीन मिनट भी नहीं लगे….एक नंबर की चटोरी मशीन लग रही थी… उसे देखकर मुझे Delhi की गोलगप्पे के stall पर गोलगप्पे खाती हुयी लड़कियाँ याद आ गयी… उन लड़कियों और kiosk machine मे मुझे, ज्यादा अंतर नहीं मालूम पड़ रहा था…
किसी भी गोलगप्पे की दुकान के पास खड़े हो जाओ…. कितनी जल्दी -जल्दी गोलगप्पे गायब होते हैं ….बेचारा गोलगप्पे वाला अभी गोलगप्पों मे पानी ही भर रहा होता है कि, दोने वाले हाथ उसके सामने आ जाते हैं ….ठीक वैसा ही अनुभव मुझे आज bill जमा करते समय हो रहा था...
अभी एक नोट डाल ही रही थी , तुरंत ही गायब हो जा रहे थे …मुझे थोड़ा सा भी समय नहीं दे रही थी kiosk machine … ऐसा लग रहा था कि, बीच-बीच में मुझे आँखे दिखा कर बोल रही हो…..गोलगप्पे के स्टाल के पास वाली कतार के अंदाज में मुँह खोल रही हो ….भैय्या ! नोटबंदी वाली करेंसी मत खिलाना ,ज़रा हमारे हाजमे का भी ध्यान रखना …..
फिर ऐसा लगा कि मेरा हाथ रोककर बोल रही हो, चलो 100-100 के ही खिला दो ….बाद मे हंसते हुये बोलने लगी कि , नयी नोट को बाद मे सोंठ वाले पानी के रूप मे खिला देना… digestion सही रहता है….
मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था kiosk machine के ऊपर…. सिर्फ अपना पेट भरने मे लगी हुयी है…
वैसे भी मेरी तीन घंटे की मेहनत चट कर गयी …. उसे सिर्फ नोट खाने से मतलब ….Bill जमा करने के बाद मेरा भी जल्दी घर जाने का इरादा बदल गया बचा हुआ समय गोलगप्पे वाले का stall खोजने मे चला गया….सोच रही थी क्या मशीन है ! खुद तो नये -नये नोट खाती है ,और हमे गोलगप्पे की याद दिलाती है…
हमारी healthy life style पर नजर लगाती है …चलो कोई बात नहीं , एक दिन तो खाना बनता है …
थोड़ी देर मे मै भी गोलगप्पे के stall पर थी … 100 के नोट और गोलगप्पे दोनो को, बड़े प्यार से देख रही थी… kiosk machine द्वारा खाये गये अपने 100 के नोटों को भी याद कर रही थी ….
कभी-कभी निर्जीव वस्तुओं को भी, अपने आप से जोड़कर देखिये ….खाने के बहाने ही आप का मन, उस दिन की नकारात्मक बातों से परे हट जायेगा ….