November 8,2016
हम सभी ने अपने बचपन मे कुछ मीठे -मीठे गाने सुने हुये हैं ,चाहे वो लोरी के रूप मे हो या school मे सीखी हुयी rhymes के रूप मे, बचपन मे सुनी और सीखी हुयी चीजें हमेशा मन मस्तिष्क मे रहती हैं।
जिसने “चंदा मामा दूर के” को ध्यान से सुना , उसे आकाश को निहारने की आदत पड़ गयी और आकाशगंगा से प्यार हो गया ।
पेड़ों पर झूला डालकर जिसने, झूले की ऊँची – ऊँची पेंग ली उसे पेड़ों से प्यार हो गया ।जिसने मिट्टी मे पौधों को रोपा और उसे , बड़ा होते हुये देखा उसे मिट्टी से प्यार हो गया I जिसने पशु पक्षियों को अपने आस-पास देखा उन्हें, उनसे लगाव हो गया I
कुल मिलाकर ‘Positive effect of nature’ आ ही गया और प्रकृति से प्यार हो गया ।
लेकिन सच मे जैसे -जैसे बड़े होते है जिंदगी के मायने बदल जाते हैं ।आजकल समाज मे यहाँ , वहाँ हर जगह लोग असंतुष्ट है ।कितना आश्चर्य होता है न प्रकृति को देखकर , कितनी अबूझ पहेली जैसी होती है न प्रकृति! हम जितना देखते और सोचते हैं वो , प्रकृति का अंशमात्र ही होता है ।
अभी तो कहीं झरना देखा, नदी देखी,पहाड़ और रेगिस्तान भी देखा I कितनी विविधता दिखती है न ! ये सब सोचते -सोचते मन प्रकृति मे ही खो जाता है I एक बार फिर से कविता लिखने को मजबूर कर देता है …..
प्रकृति तुम अगम भी हो ..
प्रकृति तुम सुगम भी हो ..
प्रकृति तुम विचित्र भी हो ..
प्रकृति तुम जुझारू भी हो ..
प्रकृति तुम निष्क्षल भी हो..
प्रकृति तुम सरल भी हो..
प्रकृति तुम विरल भी हो..
प्रकृति तुम वृहत भी हो..
प्रकृति तुम अनंत भी हो..
प्रकृति तुम अकूत भी हो..
प्रकृति तुम अनुराग भी हो..
प्रकृति तुम उदार भी हो..
प्रकृति तुम राग भी हो….
प्रकृति तुम सौभाग्य भी हो..
सभी को बताओ सरलता मे जीना..
सभी को सिखाओ विपत्तियों से जूझना..
क्यूँ दिखाते हैं लोग जीवन मे लोभ ?
क्यूँ उठाते हैं लोग काँटो का बोझ ?
तिनको से बने होते हैं क्या लोगो के ठिकाने ?
होते नहीं क्या उनके पक्के आशियाने ?
बाँधकर रिश्तों को रखना क्यूँ नहीं सीखते लोग ….
हमेशा तर्क वितर्क मे ही जूझते रहते हैं लोग ….
तुम्ही तो बताती हो जीवन पथ पर चलना ….
तुम्ही तो सिखाती हो तूफानो मे सँभलना ….
ये तो बताओ खोया कहाँ वो विश्वास ?
देखकर कभी किसी को भी होता न था जब अविश्वास ।
तुम से छुपा है क्या जीवन का सच ….
कितनो को मिला है ये जीवन सरल …
क्यों सिखाती हो लोगों को छल ?
जरूरी होता है क्या जीवन में हर पल ?
सरलता को हमेशा क्यों छोड़ते हैं लोग ?
जीवन पथ को हमेशा क्यों , मोड़ते है लोग ?
श्रम से ही मिलती है जीवन में सफलता …
सफलता का नहीं है कोई पैमाना दूजा ….
पाखंड भी होता है क्या हमेशा जरूरी ?
धोखा देना भी होता है क्या हमेशा जरूरी ?
प्रकृति तुम शीतल भी हो..
प्रकृति तुम कोमल भी हो..
Positivity और Negativity दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं । कोई भी negative thought दिमाग मे आते ही दिमाग तुरंत उसको implement करने के लिये कहने लगता है I उस thought को मजबूती प्रदान करने के लिये, चार और negative thought दिमाग मे आते हैं I
अपने attitude को तुरंत change करिये, अपने आप मे ही अभूतपूर्व देखेंगे I