October 6,2016
हाय रे! हमारी प्यारी सी दिल्ली…..एक समय Blue line bus की मारी
सोचती हूँ तो थोड़ी सी Negativity आती है….कितने परिवार भुक्तभोगी हैं उनकी ज्यादती के ...
अपने आप को Volvo Bus, समझा करती थी…क्या Racing track पर कारो की raceहोती है, जो ये लगाया करती थी ..उनकी कमी वैसे आजकल orange bus पूरा कर रही हैं..बिल्कुल उनके ही नक्शे कदम पर आगे बढ़ रही हैं…
मैने तो छोड़ दिया दिल्ली मे बस का सफर करना …जब एक बार भारी भीड़ मे भेड़चाल चलते हुये, अपने साथ उतरने वाले और लोंगो की देखादेखी ! हमने भी पीछे के दरवाजे से उतरने की गुस्ताखी की थी …मालूम पड़ा , अभी पूरी तरह हमारे पाॅव सरजमीं को छू भी न पाये थे कि, बस ने फर्राटा भर दिया …
बस के टायर को अपने सिर के बहुत पास से गुजरते हुये देखा…कुछ भले मानुष लोगो ने मोटर साइकिल दौड़ा कर, तेजी से भागती हुयी बस के ड्राइवर और कंडक्टर को खींच कर, बस से बाहर निकाला था ..उसके बाद ड्राइवर और कंडक्टर ने हरियाणवी मे हमे हमारी ही गाथा सुनायी….सच मे मुझे ऐसा लगा की, पूरी की पूरी गलती सिर्फ हमारी है, ये तो बेचारे बेकसूर ठहरे...
“मैडम जी तेरे तै किसने कई थी पीछे तै उतरण ताई…
दिखैये तै पढ़ी लिक्खी सै सारी भीढ़ पीच्छै सै उतरै है..
तै तू भी उड़ैतै उतरेगी पहले तै ध्यान राख कै आगै तै उतरा नहीं जाथा..
इब अगर टैर के नीच्चैआगी होती तै कोण जिम्मेदार होत्ता..
थारे घर आणे ही दुक्खी होत्ते और किये का कुच्छ न बिगणता…
चल खड़ी हो जाकै बालकां ताही रोटी राट्टी बणां ले।
उस समय शारीरिक चोट की परवाह न हुयी…… क्योंकी शब्दों की चोट ज्यादा भारी पड़ रही थी …..मै सिर पकड़ कर बैठ गयी …. ऐसे लोंगो से क्या उलझना , जिनके अंदर मानवीय संवेदना ही नहीं …सुना था महानगरों मे लोगो की संवेदना मर जाती है …सही में देख लिया ,भगवान का शुक्रिया अदा किया कि, बचा लिया भगवान जी….उस दिन से कान पकड़ा….अब बस मे सफर नहीं करूंगी…
क्योंकी भगवान जी ने मेरी बात सुन ली थी…
हमारी दिल्ली में इठलाती बलखाती Metro का आगमन हुआ था….क्या हालीवुड हिरोइन जैसी दिखती है हमारी Metro ….बसों के जैसे , race लगाने की कोई जरूरत नहीं….. इसका अपना ट्रैक बना हुआ है मदमस्त चलती है …शुरू के कई महीने तक, मेट्रो मे सफर करने की हिम्मत नहीं हुयी…. क्योंकी नयी चीज सीखनी थी …तब सोचा कि आटो का सफर ही सबसे सही है….
वैसे कई लोगो से शुरु मे ये सुना था कि, मेट्रो मे सफर करने के लिये आपको थोड़ा दुबला पतला होना चाहिये….नहीं तो आप मेट्रो की entry के लिये लगे barricades मे फँस सकते हैं …
जब पहली बार मेट्रो मे सफर करने पहुंचे तो डर लगा कि, कहीं हम तो इसमे नहीं फँस जायेंगे, फिर अगल बगल मुड़कर देखा ….West Delhi का काफी solid weight वाला croud उन barricades को पार कर रहा था …तब जाकर जान मे जान आयी ,वैसे भी अपने से मोटे लोगो को देखकर, दिल को बड़ा सुकून मिलता है ..
उस दिन पहली बार metro station पर metro को चलते हुये देखा था…..क्या इतराते हुये चलती है मानो Red carpet पर fashion show हो रहा हो…वैसे हम सब का behavior metro परिसर में घुसते ही 180 degree पर परिवर्तित हो जाता है….बिल्कुल वैसे ही, जैसे मुहल्ले की हलवाई की दुकान पर जाकर जो बेफिक्री होती है… वो किसी standard वाली bakery shop पर नहीं होती ….
कई सारे लोगो को मैने देखा है metro में बड़ी टेढ़ी मेढ़ी सी मुखाकृति बनी होती है….इंतजार करते रहते हैं कि कितनी जल्दी metro के परिसर से बाहर निकले, और अपने मुँह की पीक से दीवारों और जमीन पर modern art बनायें….फिर उसके बाद ही वो खुलकर बात कर पाते हैं….
Metro की smartness की सारी दिल्ली कायल है, तपती गर्मी ,बरसात या शीत ऋतु हर मौसम से बचाती है…. चमचमाते हुए साफ़ सुथरे परिसर, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में अपवाद से लगते हैं…..बेशरम से बेशरम लोग भी एक बार तो ठिठकते हैं महिलाओं या वृद्ध , लाचार लोगो की सीट पर बैठते हुये …
कितनी निरीह और कातर निगाहें ! महिला कोच की तरफ देखते हुये दिखायी देती है …ऐसा लगता है मानो DMRC से, दुख के भाव के साथ ये सवाल पूछ रही हो….क्या जरूरत थी metro मे महिलाओं का कोच अलग करने की? कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है ,पहले डिब्बे के पास खड़े होने की जद्दोज़हद में…
अगर आप metro मे सफर किये हुये हैं तो, आप इन चीजों को बड़े आराम से observe कर सकते हैं …कई महिलाओं की नजर तो सिर्फ ऐसे पुरूषों को खोजने मे ही निकल जाती है …जो शायद किसी मजबूरी मे महिलाओं के लिये आरक्षित सीट पर बैठे होते है…
जागरूक और सजग दिल्ली वासी होने के कारण , हम सभी का यह कर्तव्य बनता है की मेट्रो की साफ़ सफाई और व्यवस्था को बरक़रार रखे। मेट्रो प्रशासन को अपनी तीसरी आँख का उपयोग, किसी भी आपराधिक या अशोभनीय हरकत पर सजग प्रहरी के समान ही रखना होगा।दिल्ली मेट्रो के कारण ही विश्वस्तर पर ,सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर हम अपनी साफ़ सुथरी सी पहचान बना पाये हैं।
कुछ भी हो मेट्रो है तो हम दिल्ली वालों की जान ही… मेट्रो के अंदर घुसते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है …जहाँ मन खुश हुआ वहाँ Negativity तो, कब की नौ दो ग्यारह …
हम सब के जीवन मे कुछ बुरी यादें होती हैं जो Negativity लाती हैं …
लेकिन वर्तमान मे कई सारी नई चीजें होती हैं…. जिन्हें सीख कर हम अपने
स्वभाव को positiveकरने का प्रयास कर सकते हैं…..