हे अप्रतिम सूर्य भगवान!
क्या कहता है तुम्हारा रूप जनमानस को ….कहाँ से लाते हो इतनी सुन्दरता उसके साथ-साथ इतना तेज ……तुम्हारी लालिमा भाव विभोर कर देती है मेरे मन को …..तुमको देखने से मन विचलित हो जाता है ….इतने सारे पक्षी तुम्हारे सामने -सामने घूमते रहते हैं ….ऐसा लगता है कि वो जलते हैं मुझसे और उनका एक मात्र उद्देश्य तुम्हें ढॅकना होता है ….वो पक्षी नहीं चाहते कि मै तुम्हें अच्छे से देख पाऊँ….
विचलित मन पता नहीं कितने सारे अनकहे सवाल छोड़ जाता है मन मस्तिष्क मे …जीवन मे आने वाले उतार चढ़ाव को देखती हूँ तुम्हारे साथ -साथ कितना सलोना तुम्हारा रूप है….पहले केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हो आकाश मे दिखाई नही देते …..ढूंढती हो तुम्हें रोज सुबह आकाश मे कहीं छिप कर बैठे रहते हो ….
मालुम तो सबको पड़ जाता है कि तुम आने वाले हो क्यूँ की छिटकी रहती है आकाश मे लालिमा ….फिर अचानक से परदे रूपी बादल खिसकते हैं……सबसे पहले केवल तुम्हारा भाल दिखता है… शुरूआत में कुछ सेकण्ड के अंदर ही थोड़ा सा झाँकते हो ….ऐसा लगता है कि बादलों से पूछ रहे हो मै आ जाऊँ न ” Everything Is Clear Now…..”
मै तो पृथ्वी पर विचरने वाले इस Doctor नाम के प्राणी से परेशान हूँ… कोई कहता है कि sensitive skin होने पर photosensitive allergy होती है ….सूर्य की रोशनी से दूर रहना ही सबसे बड़ा इलाज है नहीं तो pigmentation बढ़ जायेगा ……कोई Doctor कहता है किvitaminD हड्डियों को मजबूत करने के लिए जरूरी है जो कि सूर्य की रोशनी से मिलता है ….इसलिये सूर्य की रोशनी मे निकलना बहुत जरुरी है …..बड़ा confusion create कर देते हैं life में….
चलिये सूर्य भगवान छोड़िये ये सारी बातें …मुझे तो सूर्योदय देखना अच्छा लगता है ….दिन का तेज थोड़ा परेशान करता है ….लेकिन आपकी किरणों की तपन शरीर की सारी Negativity को पसीने के रूप मे बाहर निकाल देती है …..और Positivity को रास्ता देती है अंदर आने के लिये ….
लेकिन तुम्हारा इस तरह से सँभल-सँभल कर आना बहुत सारी चीजें सिखाता है …..सुबह से लेकर शाम तक विचरना है तुम्हें इस आकाश मे पूरी तैयारी के साथ आते हो….चंचल बादल तुम्हें ढॅक लेते है लेकिन फिर भी उनके पीछे से तुम अपना तेज फेकते हो भले वो कुछ समय के लिये थोड़ा कम होता है…
क्या -क्या है तुम्हारे अंदर देखने को बहुत मन करता है ….विज्ञान की नजर से नहीं केवल एक प्रशंसक की नजर से …जो भी कुछ तुम्हारे अंदर है क्या वो तुम्हारे इतने तेज मे बचा होगा? कैसे सँभाल कर रखा होगा तुमने अपने अंदर समाहित चीजों को ….देखने मे तो नहीं लगता कि जो कुछ तुम्हारे अंदर है वो केवल राख होगी ...
.सुबह-सुबह तुम्हारे रूप मे बड़ा भोलापन रहता है …ऐसा लगता है अलसाई आँखों ने तुम्हारे सौंदर्य को लालिमा से भर दिया है …..थोड़े समय मे ही तुम्हारी तरुणाई दिखती है तो उस समय तुम्हारा रंग गाढ़ा नारंगी हो जाता है …उसके बाद तुम युवा अवस्था मे पहुँच जाते हो तब मै छोड़ देती हूँ तुम्हे अकेला और अपने काम मे लग जाती हूँ..
बीच-बीच मे होती है तुम्हारी चिंता मुझे …..आती हूँ तुम्हे देखने आकाश मे पता नहीं किस-किस कोने मे मदमस्त होकर घूमते रहते हो तुम….मुझे पता है कितना भी घूम लो शाम को तुम्हें अपनी लालिमा लेकर वापस आना ही है…वो बात अलग है कि सुबह की लालिमा सूर्योदय की होती है और शाम की सूर्यास्त की …..
लेकिन रूप तुम्हारा दोनो स्थिति मे एक जैसा ही होता है …मुझे मालूम है कि यहाँ तुम अस्त हो रहे हो तो ,तुम्हारा कहीं न कहीं तो उदय हो ही रहा होगा …..जिंदगी को बहुत सारी चीजें सिखाते हो कि अपने स्वभाव मे हमेशा संतुलन बनाये रखना चाहिए चाहे वो आपकी उत्तरोत्तर प्रगति का समय हो या अधोगति का…
प्रकृति हमे सब कुछ सिखाती है जरूरत है Positiveहोकर चीजों को देखने की ….