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सूरजकुंड मेला संस्कृतियों का संगम

by 2974shikhat February 19, 2018
by 2974shikhat February 19, 2018

ऋतु वसंत की उल्लास लेकर आती है। वसंत ऋतु में ही हमारे देश के कई शहर मेला की सजावट के कारण आकर्षक ढंग से सजते हैं।

मौसम खुशनुमा होने के कारण जनसैलाब भी मेला परिसर में इकट्ठे हुए दिखते हैं।
दिल्ली में रहने वालों को तो आसपास के NCR के शहर भी अपने ही लगते हैं,अब चाहे वो दिल्ली से सटे उ०प्र० के शहर हों या हरियाणा के।
हरियाणा का फरीदाबाद शहर विगत तीन दशक से ज्यादा समय से ,हरियाणा सरकार के सहयोग से सूरजकुंड मेले का आयोजन करता रहा है।
मै भी अपने उत्साह को नही रोक पायी और सूरजकुंड मेले में शिरकत करने पहुंच गयी।
हर बार अलग प्रदेश की थीम के अनुरूप मेले का आयोजन होता है।

इस बार उत्तर प्रदेश की कल्पना को मेले में उतारा गया था, और उसी के अनुरूप मेला परिसर सजाया गया था।

Soorajkund Mela
एक तरफ हरियाणा की भूमि अपने को दमदार तरीके से प्रस्तुत करते हुए बोल रही थी।
“देशों में देश हरियाणा
जित है दूध दही का खाणा”
तो दूसरी तरफ सारा मेला परिसर बोलता हुआ दिख रहा था।
“यू०पी० नही देखा तो इंडिया नही देखा”
कुल मिलाकर एक प्रदेश अपनी भूमि पर दूसरे प्रदेश के साथ स्नेह प्रर्दशित करते हुए ,भाईचारा निभा रहा था।
मुख्य द्वार का नाम ब्रजद्वार रखा गया था ,और कान्हा जी द्वार के ऊपर विराजकर आने जाने वाले लोगों को निहार रहे थे।
सूरजकुंड मेले का आयोजन कराने का मुख्य उद्देश्य हरियाणा सरकार का, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खरीददारों के लिए, पहुंच प्राप्त कराने में शिल्पकारों की मदद करना है।
मेला परिसर में प्रवेश करते ही बच्चों के शोर ने नज़रों को फेर दिया। एक अलग ही खंड हर उम्र के बच्चों को ध्यान में रखकर झूलों से सजाया हुआ था।
Soorajkund Mela
मेले की सजावट को रंग-बिरंगे उल्टे छाते, रंगीन झालरें, कलात्मक तरीके से बनाते हुए द्वार
निखार रहे थे।
ज़रा सा आगे बढ़ते ही बनारस के घाटों का आकर्षक क्रम, सजा हुआ दिखाई दे गया।
भगवान विश्वनाथ की नगरी वाराणसी “देशों में देश हरियाणा”की जमीं पर उतरी हुई दिख रही थी। थोड़ी दूर पर ही भगवान राम की भी ओजमयी मूर्त्ति दिख गई।
Soorajkund Mela
वाराणसी के घाटों की श्रृंखला समाप्त होते ही, महाराष्ट्र की एलीफेंटा केव को दिखाते हुए भगवान शिव की त्रिमूर्ति दिखती है,जो शाम ढलने के बाद अलग-अलग रंग की रोशनी में डूब कर ज्यादा आकर्षित कर रही थी।

Soorajkund Mela

दुधवा नेशनल पार्क को दिखाता हुआ एक बाघ भीड़ की तरफ देखता हुआ दिखता है ,वहीं गैंडा अपनी आंखों को चैतन्यता से खोले नज़र आता है। हस्तशिल्प और शिल्पकारों के साथ  यह मेला , पर्यावरण सुरक्षा और उसके महत्व की बात भी कर रहा था।
इस बार भी गड़िया लोहारों की बैलगाड़ी और उनका परिधान लोगों को आकर्षित कर रहा था।
अचानक से हरियाणा का गांव भी दिख गया बड़ी सी खाट उसके सामने रखा हुआ हुक्का। हुक्के के माध्यम से सामाजिक लोकाचार को, चौपाल और घरों के आंगन के जरिए दिखाने का प्रयास, खूबसूरती से किया गया था।

Soorajkund Mela

हर उम्र के बच्चे दिखाई पड़ रहे थे,कुछ तो अपनी मां की गोद में घूमते घूमते ही थकान महसूस करते हुए सो गए,तो कोई पैदल चलने के बाद अपने परिवार के सदस्यों की गोद में निढाल हो गया। मेले की मस्ती बच्चों की खिलखिलाहट और उत्साह के बगैर अधूरी दिखती है।
एक बच्चे के हाथ से छूटा हुआ सिक्का भी अपनी मस्ती में ढलान पर लुढ़कते हुए गति पकड़ लिया,उस सिक्के को पकड़ने की कोशिश में बच्चों का झुंड दिखा।
आगे बढ़ते ही बीन पर थिरकते हुए पांव भी दिख गए,ढोल की थाप ने विदेशियों को भी ताल के साथ थिरकने के लिए उत्साहित कर दिया।
कानों ने अस्सी के दशक के गाने को सुनने के बाद कदमों को रोक दिया, रंगीन साफा बांधे हुए बाइस्कोप वाले को देखकर बचपन के दिन याद आ गये, लोगों का समूह बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार कर रहा था।

Soorajkund Mela

हस्तशिल्प से संबंधित तमाम स्टाल सजे दिख रहे थे,देशी शिल्पकारों के सामानों के साथ विदेशी शिल्पकारों का सामान भी सजा दिख रहा था।
एंटीक सामान , आर्टीफिशियल ज्वूलरी,बांस का समान,कार्पेट,नक्काशी, मिट्टी का समान, कठपुतली सभी कुछ दिख रहा था।
Soorajkund Mela
किसी भी स्टाल पर पहुंचते ही दुकानदारों के चेहरे पर, आशा की चमक दिखाई दे रही थी।
तरह तरह की साड़ियां और दुपट्टे महिलाओं और लड़कियों को आकर्षित कर रहे थे,और उनके मोलभाव भी चल रहे थे।
सांस्कृतिक कलाकारों का उत्साह चौपाल पर दिख रहा था।देश विदेश के कलाकार अपनी कला को दिखा रहे थे। लोगों की भीड़ अपनी पसंद और समय की उपलब्धता के अनुसार कार्यक्रम को देख रही थी।
उत्तर प्रदेश के जायके के अलावा, गलियों और नुक्कड़ का खाना, अन्य प्रदेशों के स्वादिष्ट खाने के स्टाल भी नज़र आ रहे थे। मेले में घूमते घूमते भूख का अनुभव या कुछ अलग स्वाद का लालच लोगों को फूड कोर्ट की तरफ खींच रहा था।
सूरज के छिपते ही मेला परिसर रंगीन रोशनी से जगमगा गया, ऐसा लग रहा था मेले की खूबसूरती में चार चांद लग गए हो। काफी समय वहां बिताने के बाद हमने वापस जाने का निर्णय लिया।
परिसर से बाहर निकलते हुए मंद गति से बजती हुई संगीत की धुन कानों को मधुर लग रही थी। झूलों वाला खंड रोशनी से जगमगा रहा था अभी भी वहां से शोर सुनाई पड़ रहा था।
Soorajkund Mela
बाहर निकलते समय मेला वापस अपनी तरफ खींच रहा था। लेकिन समय ज्यादा हो जाने के कारण हमने अगली साल फिर से मेले में आने के वादे के साथ, तेजी से अपने कदमों को आगे बढ़ा लिया।
Art and culturefeelings of positivityHaryana TourismIncredible IndiaSoorajkund Mela
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devdash2020 February 19, 2018 - 4:31 am

बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख, वो भी सहज शब्दो में।

Manisha Kumari February 20, 2018 - 5:09 pm

बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है इस मेले को आपके सटीक शब्दों के द्वारा।

Mrs. Vachaal February 20, 2018 - 5:27 pm

धन्यवाद 😊

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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