केंद्र सरकार ने भारत के हथकरघा उद्योग के बारे मे ,जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 7 अगस्त 2015 को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत की थी ।

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7अगस्त को हथकरघा दिवस के लिए इसलिये चुना गया क्योंकि ,भारत का स्वदेशी आंदोलन 1905 मे आज के ही दिन शुरू किया गया था ।
भारतीय समाज का हिस्सा बन कर देखिये ।
संस्कृति और सभ्यता को ज़रा बारीक नज़रों से परखिये ।
सबसे पहले परिधान नज़र आता है।
उन्हीं परिधानो के साथ जुड़ा हुआ, हैंडलूम उद्योग संघर्ष करता नज़र आता है।
भारतीय पारंपरिक परिधानो मे साड़ी ने हमेशा अपने परचम को लहराया है।
हर प्रदेश के बुनकरों की मेहनत ने , हथकरघा उद्योग के साथ मिलकर साड़ी के सौंदर्य को बढ़ाया है।
परिधानो मे से साड़ी को सम्मानपूर्वक देखते हैं ,भारत के हर प्रदेश की सैर पर लेखनी के साथ चलते हैं ।

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मानो या न मानो भारतीय सभ्यता और संस्कृति का
सारा विश्व दीवाना रहा है ….
भारतीय इतिहास इस बात को बताता है कि
ऐसे ही नही हजारों साल से
भारतवर्ष विदेशी आक्रमणकारियों
का ठिकाना रहा है……
इन आक्रांताओं के बीच हमेशा ही
अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाना
चुनौती रही होगी ……
शाशकॊ को रणभूमि के अलावा, सामाजिक स्तर पर भी
युद्ध की कसौटी पर, खरा उतरना पड़ा होगा …….
समाज सबसे पहले सामने दिखने वाली बातों से
प्रभावित होता है …….
जिसमें परिधान सबसे पहले आता है ……
भारतीय समाज में, महिलाओं के परिधानों की तरफ
नज़र को फेरो तो,अलग-अलग तरीके से
पहनी हुई साड़ियों के साथ महिलाओं की
तस्वीर नज़र आती है …….

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लहराती हुई साड़ी अपनी पारंपरिकता की बातों को
बड़े गर्व से सुनाती है …….
वेदों की तरफ नज़रों को फेरो तो वहां साड़ी दिखती है …..
ऋग्वेद की संहिता के अनुसार, यज्ञ या हवन के समय
साड़ी का साथ प्रमुखता से दिखता है ……
हर एक प्रदेश की अपनी सभ्यता और संस्कृति दिखती है …..
बुनकरों की मेहनत , हथकरघा उद्योग के साथ दिखती है
नौ गज की साड़ी महाराष्ट्र की पहचान है ……
पैठण शहर में बनी पैठणी साड़ी का उद्गम
अजंता की गुफाओं से प्रेरित जनों का काम है …..
उत्तर भारत की तरफ नज़रों को फेरो तो
बनारसी साड़ी इतराती दिख जाती है ……
देश विदेश में अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है …..
बिहार टसर सिल्क की साड़ी की बात बताता है ……
मधुबनी कला की छाप साड़ियों पर छोड़ जाता है …..
दक्षिण तो सिल्क का खजाना है …..
कोई कांजीवरम तो कोई मैसूर सिल्क का दीवाना है ….
मध्य भारत की बात करो तो…
होल्कर वंश की शासक देवी अहिल्या बाई ने
माहेश्वरी सिल्क साड़ियों को आगे बढ़ाया था …..
मध्य भारत ने चंदेरी की साड़ी को राजघराने
की पहचान के रूप में अपनाया था ……
कोसा सिल्क साड़ी के साथ छत्तीसगढ मुस्कुरा रहा था …..
अपने प्रदेश की पहचान कोसा सिल्क को बता रहा था…
गुजरात पटोला साड़ी के ऊपर डोलता है …..
सूरत शहर तरह-तरह की साड़ियों की बात बोलता है ……
असम की मूंगा सिल्क, राजस्थान की बंधेज
उड़ीसा की बोमकयी …..
सभी साड़ियों ने अपनी बात जोश के साथ कही …
सारा बंगाल साड़ियों का दीवाना है …..
बालूचरी हो कांथा सिल्क हो या सूती साड़ियों का
अनमोल खजाना है …..
सूती साड़ियां ज़रा सा अकड़ दिखाती हैं …
चरक के साथ ज़रा सा कड़क नज़र आती है…
सिल्क हमेशा गरिमामयी दिखता है….
हर तरह के उत्सव में जंचता है….
वहीं सिन्थॆटिक हो या शिफान……
रोजमर्रा के जीवन मे दिखती हैं…..
साड़ी की अपनी गरिमा होती है….
आधुनिकता के बीच में भी साड़ी ने अपनी
गरिमा को संजोया है….

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सुंदर सुंदर साड़ियों के पीछे छुपे बुनकरों की मेहनत !
और पसीने के बारे में समाज ने अपने कोमल एहसासों को खोया है….
जबकी हथकरघा उद्योग इन्हीं बुनकरों की बदौलत फला और फूला है….
इतना भी आधुनिक हमारा समाज नही हुआ कि
साड़ी को परिधानों के बीच में खो दिया हो …
शादी ब्याह उत्सवों में आज भी
साड़ी की गूंज सुनाई पड़ती है ……
महिलाएं और लड़कियां जब आधुनिकता के साथ
गले मिलकर , साड़ियां पहने हुए दिखती हैं …..
मां का आंचल जब भी याद आता है …..
साड़ी का एक छोर हमेशा ही
आंखों के सामने लहराता है …..

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“राष्ट्रीय हथकरघा दिवस “के माध्यम से हथकरघा क्षेत्र के पुनरोत्थान के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। जिससे बुनकरों की आय बढाई जा सके, उनकी आने वाली नई पीढ़ी सम्मान पूर्वक हथकरघा उद्योग को अपना सके।
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सच में साड़ियों का दामन थाम कर सारा हिंदुस्तान घूम लिया।
हाँ ,मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव रहा☺