चलिए आज देश की राजधानी के आम लोगों के, रोज के जीवन की भागादौड़ी के सफर पर , एक लेखक के अंदाज से चलते हैं।
देश की राजधानी में कुछ दशक रह लेने के बाद राजधानीवासी , चारो तरफ होने वाले विकास का गवाह बन जाता है। अपनी बातों को अपने अंदाज में कहता नजर आता है।
नेशनल हाईवे ८ से दिल्ली के तरफ का सफर करिये तो, रास्तों पर तेज रफ़्तार दिखती है। धौलाकुआं पर तेज गति के ट्रैफिक का साथ देती हुई लूप सी बनाती हुई सड़क , गाड़ियों की चकाचौंध के साथ आकर्षक दिखती है। आज इन चमचमाते हुए रास्तों पर सफर करते हुए राजधानीवासी उस समय को भी याद करते हैं जब , इन रास्तों के निर्माण का दौर था। ट्रैफिक जाम के कारण इन रास्तों पर सफर करना सर्दी के मौसम में भी माथे पर पसीने की बूंदों को छलका देता था।
सफर करते हुए रास्तों को एक लेखक की भांति देखना , तुलनात्मक विश्लेषण करा देता है।
सफर का माध्यम यदि दोपहिया ,चारपहिया की जगह यदि एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो तो अलग विश्लेषण।
ऐसा लगता मानो एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पर चलने वाली मेट्रो , प्रबुद्ध बुद्धिजीवी समान। प्लेटफॉर्म पर लगे शीशे के दरवाजों के पीछे , शांत और गंभीर मुखमुद्रा के साथ चुपचाप खड़ी।
सफर करने पर ऐसा लगे ,मानो बस अभी रनवे पर दौड़ते हुए उड़ने की तैयारी। साफ़ सफाई इतनी की आम आदमी भी खुद को विशेष की श्रेणी में खड़ा पाता। वैसे तो मेट्रो की सभी लाइन पर साफ़ सफाई और व्यवस्था काबिलेतारीफ होती है लेकिन , एयरपोर्ट एक्सप्रेस की भव्यता ज़रा सी अलग।
तेज गति ,अँधेरी सुरंग के बीच में लम्बा रास्ता ,उसके बाद धीरे -धीरे रौशनी का आगमन। रास्तों के ऊपर से सरपट दौड़ती हुई एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो और ऊपर खुला आकाश। अचानक से इतनी हरियाली जो सड़क के माध्यम से सफर करने पर नजर नहीं आती।
रात के अँधेरे में चमचमाती रौशनी के साथ सफर हो या दिन के उजाले का ,एक अद्भुत एहसास।
एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो के सफर के दौरान ,यदि देश पर एवं राजधानी के विकास पर गर्व का भाव न आये ,तब तो झूठा देशप्रेम।
अब सफर आगे बढ़ाते हैं –
आम आदमी से विशेष बनने के बाद
एक बार फिर से आम बनिये और ,नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ कदम बढाइये। मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलते ही सुनाई पड़ेगी गाड़ियों के हॉर्न की लयबद्ध सी आवाज। अपने क़दमों की गति को ज़रा बढ़ाकर , नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के परिसर के पास पहुंचकर गहरी सांस अंदर और फिर बाहर।
यात्रियों की भीड़भाड़ ,कुलियों की आवाज ,एक दिशा में जाता और दूसरी दिशा से आता हुआ रेला। किसी की ट्रेन छूटने ही वाली थी ,किसी की तो छूट गयी ,किसी को समय से पहले पहुंचने का विजयी आभास।
मानव व्यहवार और भावों के बदलने का वातावरण में सकारात्मक और नकारात्मक एहसास।
कई यात्री तो इस असमंजस में की ,अजमेरी गेट की तरफ से जाना सुविधाजनक या पहाड़गंज की तरफ से। इतनी रेलमपेल ,ठेलमठेल सोच में पड़ गया दिमाग , इतनी भीड़भाड़ में असामाजिक तत्वों की गतिविधियों को देख पाना कैसे संभव होता होगा। फुट ओवर ब्रिज पर चलते हुए आम आदमी होने का अहसास एक बार फिर से प्रबल था।
एयरपोर्ट एक्सप्रेस वाला विशेष वाला भाव जाने कहाँ छू – मंतर।
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नई साज सज्जा के साथ नजर आते हैं। भीड़भाड़ के बीच में यात्री एक तो, प्लेटफॉर्म तक छोड़ने आये मित्र और सम्बन्धियों की संख्या अनेक। चारों तरफ नजरों को दौड़ते हुए देखा तो पिछले दशक में शुरू हुए नवीनीकरण ने ,नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के रूप को बदल दिया है।
दौड़ते भागते हुए यात्रियों के सामान का बोझ ,स्वचालित सीढ़ियां ,फुटओवर ब्रिज से नीचे देखने पर लाइन से खड़ी हुई रेलगाड़ियां। कहीं धीरे धीरे सरकते हुए ,कहीं रफ़्तार पकड़ते हुए अपने गंतव्य की ओर।
वापसी के लिए मेट्रो स्टेशन की तरफ बढ़ते हुए दिमाग में विचार आ रहा था , “स्वच्छ भारत अभियान” जैसे विषय में पास होना , तब तक संभव नहीं हो सकता जब तक की मेट्रो स्टेशन की भांति ही, रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन साफ़ सुथरे नजर आयें।
वापस लौटने के लिए मेट्रो स्टेशन में प्रवेश करने पर चमचमाते हुए दिशा निर्देश ने ,एयरपोर्ट एक्सप्रेस की तरफ का रास्ता दिखाया ,लेखक मन ने विचारों को क्रमबद्ध करते हुए अपने क़दमों को आगे बढ़ाया।