विषय इतिहास भी अच्छे खासे नगरों और कस्बों के नाम परिवर्तन की बात को ,शाशन -सत्ता और शक्ति प्रदर्शन के साथ बतलाता है।
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बीतते हुए समय के साथ परिवर्तित नाम ही जुबान पर चढ़ जाता है। वास्तविक नाम से आम जनता का परिचय इतिहास के पन्नों को पलटने के साथ हो पाता है। बात वर्तमान के प्रयागराज की करिये तो लम्बे समय के बाद ,अपने वास्तविक नाम से अपनी खोयी हुई पहचान को वापस पाया है।
प्रयागराज नाम तो पौराणिक ग्रंथों के भीतर ही समाया रहता था।
कहिये तो कुछ अलग सा नही है शहर, मानिये तो बड़ा अलग सा है शहर।
आज बचपन की स्मृतियों मे नज़र आ गया , गंगा जी का किनारा ,रास्तों की भीड़भाड़, आज से दशकों पहले भी जाम से जूझता हुआ।
लेकिन ,अपनेपन के साथ धार्मिकता और आध्यात्म को खुद के भीतर समेटता हुआ।
ज़रा सी हाई पिच मे बातें करते हुए स्थानीय लोंग ,अधिकांशतः स्थानीय धार्मिक लोगों की सुबह सुबह ही गंगा जी के किनारों की दौड़।
रेत बालू के साथ खेलता हुआ बच्चों का समूह। गंगा जी के किनारों पर रेत से शंख और सीपियों को चुनता हुआ बचपन।
मौसम की बात करिये तो सर्दी मे कड़ाके की सर्दी, गर्मी मे बिजली कटौती के साथ सूर्य की किरणों का तीव्र प्रहार। नदी के किनारे बसावट होने के कारण ,गर्म मौसम मे आद्रता का स्तर बढ़ा हुआ होता है।
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