Many people are always judging others according to money and appearences .
There are others who are unable to take quick decisions .My post is about such mentally infertile people .
“वृहन्नला” महाभारत मे एक वर्ष के अज्ञातवास के समय ,पराक्रमी अर्जुन के द्वारा अपनाया गया नाम था ।
अर्जुन “वृहन्नला “के नाम से रनिवास मे, स्त्रियों को नृत्य और संगीत की शिक्षा दिया करते थे । उस समय अर्जुन अप्सरा उर्वशी के द्वारा दिये गये श्राप से नपुंसक थे ।
इस पोस्ट को लिखने के लिये मै WordPress से ही प्रेरित हुयी ,जब मैने वृहन्नलाओं के ऊपर लिखा एक लेख पढ़ा ।यहाँ पर “वृहन्नला” शब्द का उपयोग मैने शारीरिक अपूर्णता से ग्रसित वृहन्नलाओं के अलावा मानसिक नपुंसकता से ग्रसित इंसानो के लिये भी किया है ।
मानसिक नपुंसकता केवल पुरूषों के ऊपर ही नही, बल्कि महिलाओं के ऊपर भी लागू होती है।
अपने आस-पास सामाजिक परिवेश मे, परिवार मे, हर जगह मानसिक नपुंसकता के शिकार लोग देखने को मिलते हैं ।
इस post को लिखने का उद्देश्य, किसी वर्ग या व्यक्ति विशेष को अपमानित करना नही है ।
सामान्यतया हम सभी के अंदर कहीं न कहीं, मानसिक नपुंसकता छिपी रहती है।
मेरा उद्देश्य सिर्फ अपने विचारों को व्यक्त करना है…
देखती हूँ हमेशा नगरों महानगरों मे…..
स्वांग रचायी हुयी “वृहन्नलाओं” को……
चेहरे पर पुता हुआ श्रृंगार….
उसके अंदर से झाँकता हुआ
उनका बनावटी व्यवहार……सोच मे पड़ जाती हूँ कभी-कभी…
क्या शारीरिक अपूर्णता ही
“वृहन्नला “बनाती है?दिखते हैं लोग चारो तरफ….
तौलते हैं नजरों से इंसानो को….
आथिर्क विषमता एवम् रंग रूप ही
उनका पैमाना होता है….
अपने अहं के तराजू पर ही हमेशा
इंसानों को तोलना होता है…चेहरे के ऊपर चेहरा छिपाये हुये
दिखते हैं इंसान समाज मे…
क्या वो नही होते वृहन्नला ?महाभारत के अर्जुन और शिखण्डी का
” वृहन्नला” रूप था “चक्रधारी” का रचा हुआ…आजकल की “वृहन्नलायें” दिखायी देती हैं
समाज मे चारो तरफ…
क्या महिला ? क्या पुरुष ?पूर्ण आधिपत्य से
मुखौटों के पीछे !समाज मे चारो तरफ उपस्थित ….” वृहन्नलाओं” की तालियों की आवाज के साथ-साथ….
उनकी लहराती हुयी आवाज !
मुग्ध करती है लोगों को….
तृप्त करती है “वृहन्नला”
मानसिकता वाले इंसानो को….शारीरिक नपुंसकता के भरोसे अपना
पेट पालती हुयी “वृहन्नलाओं” को देखकर….
इंसान उन्हें हँसी का पात्र समझता है….उनके नृत्य और संगीत के मजे मे, डूबता उबरता रहता है….
अपने विचारों ,अपने संस्कारो को भूल जाता है….
हमेशा दिखावे के बाजार मे डोलता रहता है….
क्या वो नही होते “वृहन्नला “?..सुनती हूँ लोगों की बातों को बड़े ध्यान से…
विचारों के मझधार मे फँसे हुए…
बिन पेंदी के लोटे जैसे लुढ़कते हुये इंसानो को
क्या वो नही होते “वृहन्नला” ?देखा था “वृहन्नलाओं “के झुण्ड को….
नरमुण्ड के बीच मे डोलते हुये….
कितनी नजरों को देखा ….
उन्हे ,ऊपर से नीचे तक तोलते हुये…..लोगों की नजरों मे हमेशा होते हैं…
अजूबे वाले भाव के साथ-साथ परिहास भी….
जीवन होता है जिस किसी के पास भी…
क्या होता नही उसे ,जीवन जीने का अधिकार भी…?अपने अंदर की कमियों को हर कोई छुपाता है….
लेकिन दूसरे की कमियों को
बड़े उत्साह से दिखाता है…..
क्या वो नही होते “वृहन्नला”?….नजर गयी “वृहन्नलाओं” की तरफ…..
अपने काम मे मशरूफ थी…
कार के शीशों के सामने खड़ी होकर…अपनी तालियों की आवाज के स्तर कोघटाते बढ़ाते हुये….
अंदर बैठे हुये इंसानो के सामने…..
हाथ फैलाने के लिये मजबूर थीं….( समस्त चित्र internet के सौजन्य से )
7 comments
क्या खूब लिखा है आपने. ढेरों जानकारियों से आपकी पोस्ट ओतप्रोत तो है ही. साथ ही ज़बर्दस्त कटाक्ष भी सही और सटीक है —
इंसानो को तोलना होता है
चेहरे के ऊपर चेहरा छिपाये हुये
दिखते हैं इंसान समाज मे
क्या वो नही होते वृहन्नला ?
इस पोस्ट को लिखने का विचार मुझे आपकी ही एक पोस्ट को पढने के बाद आया था
मेरा हौसला बढ़ाने के लिये धन्यवाद
अगर कोई भी व्यक्ति व्यवहारिक है तो समाज मे रहते हुये मानसिक नपुंसकता को आराम से देख सकता है
मैने इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से लिखने की कोशिश किया है😊
अगर मेरा पोस्ट आपको लिखने के लिये कुछ भी बिचार देता है , तब यह मेरे लिये सम्मान की बात है और यह आपका बड़प्पन दर्शाता है.
आप का पोस्ट बहुत अच्छा और सटीक है. आप प्रसंशा की हकदार है. 😊😊😊
आपकी दूसरी पोस्ट की कवर इमेज ने मुझे बेटियों के ऊपर लिखने के लिये प्रेरित किया था।मुझे ये तो नही पता कि मेरी पोस्ट किस स्तर की है बस जो दिमाग मे आ जाता है वो लिख लेती हूँ ।मुझे लगता है मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है😊
ऑथेंटिक टॉपिक
अछी हे
धन्यवाद 😊
terrific as well as fantastic blog. I actually want to thanks,
for providing us better details.
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