सोन नदी पर किये हुए रिसर्च से सम्बंधित एक किताब को पढ़ते समय उसके बहाव ,व्यापार ,किनारों पर बसे हुए नगरों की संस्कृति के अलावा अनेक रोचक प्रसंग लोकगाथा के रूप में सामने आये। इन लोकगाथाओं को पढ़ने से यह समझ में आता है कि ,भारतीय संस्कृति में नदी ,पहाड़ जंगल, मानव जीवन से हमेशा ही जुड़े रहे हैं।
प्राचीन भारतीय साहित्य में सोन या शोण को मैकलसेतु भी कहा गया है। नर्मदा मैकलकन्या के रूप में प्रसिद्ध हैं। इससे सहज ही यह अनुमान लगता है कि ,नर्मदा और सोन दोनों का उद्गम स्थल या जन्म स्थान मैकल पर्वत ही है।
यह मैकल पर्वत है विंध्य – सतपुड़ा का संधि पर्वत। दक्षिण में काफी दूर तक की सतपुड़ा श्रृंखला मैकल के रूप मे जानी जाती है।
इसी मैकल के पश्चिमी छोर पर बसा हुआ है अमरकंटक।
अमरकंटक समुद्र से साढ़े तीन हजार फ़ीट की ऊंचाई पर है ,जहाँ से नर्मदा प्रवाहित होती है। नर्मदा और सोन नदी का उद्गम एक दुसरे के पास है इसका संकेत महाभारत मे भी है। छत्तीसगढ़ और बघेलखण्ड के मूल निवासियों मे एक लोकश्रुति प्रसिद्ध है कि, ब्रह्मा जी की आँखों से दो आंसू गिरे जिससे नर्मदा और सोन नदी का जन्म हुआ ।
कुछ लोकगाथाएँ ऐसी हैं जिन्हें शुभअवसर पर मंगलाचरण के रूप मे गाते भी हैं ,इन गाथाओं ने लोकगीतों का रूप ले लिया है।