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यात्रा हौजखास विलेज की

by 2974shikhat November 13, 2017
by 2974shikhat November 13, 2017

ये दिल्ली शहर भी बड़ा बातूनी सा शहर है,हर जगह लोग धूमते फिरते या बातें करते हुए नज़र आते हैं।

कभी-कभी जब उद्देश्य सिर्फ घूमने फिरने का हो तो,हमेशा ये शहर और वो जगहें जहाँ आप गये हुए हैं बोलती हुई सी नज़र आती हैं।

शहर दिल्ली जगहें तमाम
करती है बातें बेशुमार
दिन का हो कोई भी पहर
या हो रात का समय
शहर की चकाचौंध, आँखों मे चमक ला देती है
ये शहर भी करता हमेशा अपनी
कलात्मकता और सुन्दरता की बाते
कभी दिखाता मकबरों के रूप मे
बनी हुई ऐतिहासिक इमारतें
ये जगहे ऐतिहासिक होने के अलावा
प्राकृतिक सुंदरता का केन्द्र होती हैं
हमेशा रहस्य और रोमांच से भरी होती हैं

ऐसी ही रहस्य रोमांच के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता से भरी हुई जगह है,हौज खास विलेज
मे स्थित ऐतिहासिक महत्व का परिसर और हौज खास

दिल्ली शहर मे घूमने के लिए आपको चाहिए बारीकी से देखने वाली नज़र, विचार श्रृंखला और थोड़ी जानकारी उन जगहों के बारे मे।
मेरा उद्देश्य एक समूह के साथ हौजखास विलेज घूमने जाने का, ऐतिहासिक जानकारी के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता से रूबरू होना भी था।
दिल्ली के दक्षिणी भाग मे स्थित है ये जगह।गाँव की सँकरी गलियों मे सजा हुआ बाजार ज्यादातर पाश्चात्य संस्कृति को दिखाता है। दिल्ली की आधुनिक संस्कृति और गाँव जैसी गलियां ,कुछ अजीब सा मिश्रण महसूस होता है यहाँ की आबोहवा मे।
कुछ आर्ट गैलरी,जाने माने बूटीक्स,पब, बार,लाइव म्यूजिक के साथ रेस्टोरेंट के अलावा
रोड के किनारे खड़े भेलपूरी, गोलगप्पे टोकरियों मे सजाये हुए लोंग भी दिख जायेंगे।इसके अलावा अगर आप चाय या कॉफी का शौक रखते हैं,तो वो जगहें भी मिल जायेंगी।लेकिन ज्यादातर चीजें आधुनिक जीवन शैली की जरूरत और मनोरंजन के हिसाब की ही दिखती हैं।
Hauzkhas village

Image Source : Google Free

कुछ महीने से यहाँ की तड़क भड़क मे सरकार और कोर्ट के सख्त रवैये के कारण कुछ कमी आयी है,नही तो ये जगहें सारी रात गुलजार रहा करती थीं।अगर आप को यहाँ पर दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताना है तो, इस गांव मे घुसते ही तमाम जगहें मिल जाती हैं।
लेकिन यदि आप इतिहास और प्रकृति के साथ जुड़ना चाहते हैं तो ,सीधे रास्ते के साथ चलते जाइये ये रास्ता आप को मदरसे के परिसर के पास पहुँचा देता है।अंदर प्रवेश के लिए आप को पैसे खर्च करने की जरूरत नही है, क्योंकि आप इस परिसर मे नि:शुल्क घूम सकते हैं। फिरोज शाह के द्वारा इस मदरसे का निर्माण कराया गया था।
ज़रा सा आगे बढ़ते ही वातावरण मे हल्की सी नम हवा महसूस होती है,ऐसा लगता है जैसे हम किसी जल स्रोत के पास हैं और थोड़ी सी सीढियाँ चढ़ते या उतरते ही हमे सामने जल स्रोत दिखता है,जो हौज खास कहलाता है।

कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने चौदहवी शताब्दी मे इसका निर्माण करवाया था

प्राचीन जर्जर इमारत और मस्जिद और मकबरे को जोड़ता हुआ दो मंजिला गलियारा दिखाई पड़ता है ।जिसमे छोटे-छोटे कक्ष बने हुए दिखते हैं जो मदरसे के उपयोग मे आया करते होंगे।
यहाँ पर खड़े होने पर सामने ही हौज खास दिखता है।
मुझे लगता है शायद बच्चों को तालीम देते समय प्रकृति की सुन्दरता फिरोज शाह के लिये भी मायने रखती होगी ।मदरसे के हर तल से सीढ़ियाँ नीचे जल स्रोत के पास जाने के लिए बनी हुई है।ये मदरसा उस समय आकार मे सबसे बड़ा और इस्लामिक तालीम की गुणवत्ता के लिए भारत ही नही विश्व मे भी उच्च कोटि का माना जाता था।
Hauz khas village

Image Source : Google Free

हौज खास जैसा कि नाम से ही पता चलता है..हौज मतलब तालाब या Tank..खास मतलब
Royal..अलाउद्दीन खिलजी ने चौदहवी शताब्दी मे इस जल स्रोत का निर्माण शाही परिवार के उपयोग के लिए करवाया था,और फिरोज शाह ने इसकी सुंदरता को देखकर इसके सामने ही Lके आकार के परिसर का निर्माण करवाया।
बरसात के मौसम मे इस हौज मे पानी इकट्ठा होता था,और पूरे साल शाही परिवार इस जल का उपयोग अपनी दैनिक जरूरतों के लिये करता था।
इस जर्जर इमारत के छज्जे, छतरियाँ,गुम्बद और सीढ़ियों को देखकर उस समय की कलात्मकता दिखाई पड़ती है ।
फिरोजशाह के मकबरे वाला कक्ष सबसे बड़ा दिखता है।
सारे परिसर मे आपको बड़े बड़े पेड़ दिखाई देंगे,अतिक्रमण की समस्या से दिल्ली शहर की सारी ऐतिहासिक इमारतें जूझ रही है।अतिक्रमण के कारण ही हौज खास का आकार अब अपने पुराने आकार से छोटा हो चुका है।

अचानक से मेरा ध्यान चिड़ियों की चहचहाहट की तरफ चला गया।मैने पहली बार तोतों के समूह और गिलहरियों की आपस मे लड़ाई देखी।कोई किसी से कम नही।
थोड़ी देर तक मामला वाक् युद्ध तक सिमटा रहा ,लेकिन थोड़ी देर बाद ही दोनो समूह हाथापाई पर उतर आये ।मसला सिर्फ उस दिवाल पर बनी हुई दरारों पर अपने आधिपत्य का था ।आखिरकार जीत तोतों की हुई और गिलहरियों ने अपना ठिकाना दूसरी जगह बना लिया ,और कुछ खाने मे तन्मयता के साथ जुट गयीं जैसे कुछ हुआ ही न हो।

इन परिंदो की दिलचस्पी फोटो खिंचवाने मे बिल्कुल भी नही दिख रही थी ।क्योंकि जैसे ही इन्हें समझ मे आ रहा था कि इनकी फोटो खींची जा रही है ये अपने पंखों को फैलाकर उड़ जा रहे थे।सामने हौज खास की तरफ देखा बतखों का झुण्ड शांति के साथ तैरता चला आ रहा था ।कभीअपने पंखों को फैला रहा था तो कभी समेट रहा था।
Hauz khas village

Image Source : Google Free

शाम का धुन्धलका छाने लगा ।गार्डस की व्हीसिल की आवाज आने लगी ,परिसर को खाली कराने का समय हो चला था।वैसे तो इस परिसर मे घूमने का समय 10:30से 7:30का होता है।लेकिन शायद सुरक्षा की दृष्टि से अँधेरा होने से पहले परिसर खाली कराना इन गार्डस की
जिम्मेदारी होती है।
एक बार फिर से हमारे कानों को व्हीसिल की आवाज सुनायी पड़ी हमने अपने पैर मदरसे के परिसर से बाहर निकलने के लिए मोड़ लिये और सुकून से कहीं पर बैठकर चाय या कॉफी की
तलाश मे आगे बढ़ चले।
Delhi TourismHappiness in NatureHeritage walkHistoryIncredible IndiaIndian society and culture
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2974shikhat

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