शाहजहाँ और दारा शिकोह
सोचता विचारता दारा, शाहजहाँ के पास जाने के लिए मुड़ा।
जैसे आगरा अब अकबराबाद कहलाने लगा है ,उसी तरह दिल्ली को भी अब शाहजहांनाबाद के नाम से जाना जाता है।
पचास सालों से लगे पेड़ अब जाकर आगरा को हरा – भरा दिखाते हैं और तेज गर्मी से भी बचाते हैं। दारा सोचने लगा न जाने शाहजहांनाबाद कब हरा – भरा होगा। अभी तो देखने पर फौजी छावनी जैसा ही दिखता है।
दारा यह बात जानता है की पुरानी दिल्ली के ध्वंस स्तूप पर जहॉनाबाद बसा है। पीछे ही जमुना है। एक तरफ नाव द्वारा जमुना पार की जा सकती है तो दूसरी तरफ मकान ही मकान थे। शाही सड़क से लाहौर की तरफ बढ़ो तो ,मकानों का सिलसिला खत्म ही नहीं होता।
शाहजहाँ के पास पहुँचकर दारा ने कमर झुकाकर कोर्निश की, फिर बोला-” हज़रत इस जहांनाबाद में हजारों घांस फूस की झोपड़ियाँ है। धूप में इतनी गर्मी है। इस वक़्त क्या हाथियों के सामने आग जलाना चाहिये ? कितनी बार आग लगकर हजारों झोपड़ियाँ खाक हो चुकी हैं।
बादशाह खामोश बैठे रहे। इस पर शहजादे को अपनी बात कमजोर सी लगी। अपनी बात पर जोर डालने के इरादे से शाहज़ादे ने फिर से कहा
“इस गर्मी में आग लगने पर आस पास कहीं पानी नहीं मिलता है। जमुना से पानी लाते-लाते लोगों के घर खाक हो जाते हैं।”
अब भी अपलक देखते हुए बादशाह बुत के समान बैठे रहे। शाहज़ादे का दिल दर्द से कराह उठा।
वह सोचने लगा इस पत्थर को कहने से क्या फायदा ?
उसने आखिरी बार कोशिश करने के इरादे से कहा –
“कहते हैं पानी की कमी की वजह से बादशाह अकबर को फतेहपुर सीकरी छोड़नी पड़ी थी ,खुदा न करे – उसी पानी के अभाव के कारण
आपको कहीं जहांनाबाद न छोड़ना पड़ जाये “
अब जाकर शांत और गंभीर सी आवाज निकली पत्थर के बुत के मुँह से ” खुदा की मर्जी से जहांनाबाद में पानी की कमी नही होगी शहज़ादे “
फिर ज़रा रूककर कहा , जमुना से नहर निकल रही है बस कुछ ही दिनों में पानी आ जायेगा ,फिर कोई परेशानी नही होगी।
और जब तक पानी न मिले तब तक क्या हाथियों को लेकर यह पटाखेबाजी ,आग का खेल बंद नही हो सकता है ?
आग लगने से हजारों लोग बेघर हो जाते हैं आलमपनाह !
बादशाह ने गंभीर आवाज़ में जानना चाहा तो क्या – शाही हाथियों को लड़ाई की तालीम न देकर सिर्फ बैठाकर रख दिया जाये ?
लड़ाई ? इतना कहकर दारा चुप हो गया – –