“संत कवि का डेरा और आगरे का घेरा”
तुलसीदास , रहीमदास जी को मन को शांत रखने के लिए, अपने भावों को लिखने की सलाह दे रहे थे।
अभी अपनी बात खत्म भी नहीं कर पाये थे कि ,गुफा के सामने धूल ही धूल हो गयी।
तुलसीदास जी को खाँसी आने लगी ।
खाँसते हुए ही बोले ,देखना ज़रा बेनीमाधव , ” रहीम ने अपने अंगरखे से अपना नाक और मुँह ढँक लिया।
रहीमदास ने जानना चाहा कि क्या ,ऊपर से इतनी धूल हमेशा आया करती है।
बेनीमाधव उठ कर खड़े हो गये,बोले “अक्सर ही ऐसा होता है। कुछ कर भी नहीं सकते।
क्यों ?
इस रास्ते से फौज जा रही है ,कभी रात को कभी दिन को। रहीम ने पूछा, मामला क्या है ?
सुना है की शाहज़ादा खुर्रम नर्मदा पार करके आगरा की तरफ जा रहे हैं। कहते हैं कि ये फौज आगरे में घेरा डालेगी। दिन-रात लश्करों का दौड़ना भागना चल रहा था।
पानीपत के लम्बे- तगड़े बैल तोपगाड़ियों को घसीट रहे थे।
दक्षिण से पश्चिम से बैलगाड़ियों में बंजारे सेना की रसद लेकर साथ जा रहे थे। गुफा के ऊपर की जमीन उस वक़्त घोड़ों के खुर से ऊबड़ -खाबड़ हो चुकी थी।
यही कारण है की संत कवि तुलसीदास की गुफा धूल से भर गयी थी।
शांत भाव से तुलसीदास ने , गंगा की तरफ देखा और ‘विनयपत्रिका’ के लेखन में जुट गये।
वहीँ दूसरी तरफ आगरे में दरबारी ,आजकल दरबार में जाने में आलस दिखा रहे थे। इसका कारण यह है कि बादशाह आजकल रावलपिंडी में हैं। इस बार जाड़ा वहीँ बिता कर आयेंगे।
हिंदुस्तान के बादशाह जहाँ भी रहते हैं ,वही जगह आगरा बन जाती है।
सभी को यह पता है कि खुर्रम ने दारा और औरंगजेब को , अपनी तरफ से नज़राना देकर रावलपिंडी बादशाह के पास किस मजबूरी में भेजा है।
नन्हे दारा को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि, कोई इंसान अपने अब्बाहुज़ूर के पास क्यों नहीं जा सकता।
अभी तक बगावत का शब्द दारा ने, धाय माँ के मुँह से किस्से कहानियों में ही सुना था।
दारा ने पहले भी अपने दादा साहब को देखा था। उन्हें वह भूला नहीं था। एक किस्सा उसे आज भी साफ़ – साफ़ याद है। एक फ़क़ीर कि बात सुनकर, जहाँगीर बादशाह का चेहरा कैसा सफ़ेद पड़ गया था। आगरे के क़िले में कई बार देखा है उन्हें।
दादासाहब भी हमारी तरह इंसान ही हैं। हमारी तरह ही उनके दो हाथ है ,दो पाँव है। अब्बाहुज़ूर जैसे लम्बे तो नहीं। लेकिन इसी आदमी के पास कितनी ताकत है।
कितनी फौज है ? हाथी,घोड़ा,तोप ? इंसान बादशाह कैसे बनता है ?
बादशाह बनने के बाद, क्या इंसान बना रहता है ?
दारा के बाल मन में एक शक प्रश्न के साथ बार -बार आ रहा है।बादशाह कि हँसी भी हमलोगों जैसी होगी क्या ?
जरूर हँसते समय इतना बड़ा मुँह खुलता होगा कि, होंठ कान को छूते हूए शायद ! सिर के पीछे तक चले जाते होंगे। और गुस्सा होने पर आँखें लाल होकर फिर नीली पड़ जाती होंगी।