अस्सीघाट और हरिभक्त रहीम
काशी केअस्सीघाट के संगम के पास हनुमान जी की विशाल मूर्ति को कई लोग मिलकर तेल और सिन्दूर लगा रहे थे। दोपहर की तेज धूप लगने के कारण सिन्दूरी आभा के साथ हनुमान जी चमचमा रहे थे।
मंदिर से घंटे की आवाज़ लयबद्ध तरीके से आ रही थी। पास के राम मंदिर में घंटा बज रहा था
हनुमान जी की मूर्ति भी ऐसी जगह पर स्थापित थी ,जहाँ से सीधे रामचंद्र जी की मूर्ति दिखाई पड़ती थी। राम मंदिर से निकलकर सीढ़ियाँ सीधे गंगा जी में उतरती जा रही थीं।
कुछ समय पहले ही गन्ने से लदी हुई एक नाव आकर रुकी थी। नाव से कुछ लोग उतर कर अलग -अलग दिशा की तरफ बढ़ लिये।
तभी मंदिर के सामने एक एक आदमी आ कर खड़ा हुआ। दुबला पतला सा शरीर ,उसके हाथ में फटा हुआ एकतारा था।
राममंदिर के चबूतरे पर खड़ा होकर इधर -उधर देखने लगा। एक दुबला -पतला सा चुटियाधारी आदमी मुँह बिगाड़कर बोला “ऐ !क्या चाहिये”?उसकी बात की परवाह न करते हुये वृद्ध बोले ,”वह कहाँ है वह “
दूसरा आदमी खीझकर बोला उसकी मुखाकृति भी झुंझलाहट वाली थी। यह वक़्त भगवान के भोग का है ,मै मंदिर के पट बंद करने जा रहा हूँ!
अर्थात हम बहुत ज्यादा व्यस्त हैं – आप यहाँ से खिसकें।
वृद्ध व्यक्ति फिर से बोला ” वह कहाँ है वह “
थोड़ा ठहर कर दुसरे व्यक्ति ने प्रश्न किया “आप किसकी बात कर रहे हैं “?
तुलसी ? तुलसी? कहाँ है वह ?
चुटियाधारी व्यक्ति आश्चर्यचकित हुआ। लेकिन अपने चेहरे के भाव को छुपाते हुए पूछा ? आप किसकी बात कर रहे हैं ?संत कवि तुलसीदास जी की ?
अरे वही ! है कहाँ वो ?
तबियत ठीक नहीं रहती उनकी , वो किसी से नहीं मिलते।
तब तो जरूर मिलना होगा। क्या हुआ है तुलसी को ?
उम्र अधिक हो गयी है – उस पर सारे दिन लिखाई-पढ़ाई करते रहते हैं।
है कहाँ वो ?
आवाज़ में इतनी व्याकुलता थी की ,चुटियाधारी व्यक्ति का दिल पसीज गया।
संत कवि तो अपनी गुफा के भीतर हैं।
अच्छा ,गुफा किस पहाड़ में ?
नहीं पहाड़ में नहीं वह – वहाँ कहकर वो हँसा।
बीस साल तो मुझे संत जी के पास आये हुये हो गये ,लगता है आपकी बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हुई।
उसकी बातों पर ध्यान दिये बिना ,वह लगभग राममंदिर के बीच की जगह पर चबूतरे से, नीचे जाने की सीढ़ियों पर दौड़ पड़े। संत कवि के सेवक ने मुश्किल से उन्हें रोका।
नीचे अँधेरा है ,गिर जायेंगे। थोड़ी देर सीढ़ियों पर ठहर कर ,आँखों कोअँधेरे में देखने का अभ्यस्त हो जाने दीजिये ,तब सीढ़ियाँ उतरिये।
आगे बढ़ते हुये बोला ,मेरे आने के बाद संत जी ने यह मंदिर बनवाया। हनुमान जी की मूर्ति खड़ी की। अब तो काशी के रहने वाले लोग इस जगह को तुलसीघाट कहते हैं।
अच्छा ,पर तुलसीदास को क्या हुआ ?
नीचे चलकर खुद ही देखियेगा ‘ रुककर सेवक ने पूछा, जाकर संत कवि जी को आपका क्या परिचय दूँ ‘
बुजुर्ग आगंतुक ने कहा तीस साल हो गये ,मै इधर आया नहीं।
संत कवि से बोलना .…