साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किताब दारा-शिकोह से प्रेरित होकर लिखे गए दूसरे संग्रह को “मुग़ल सल्तनत में कविता ,रुबाई ,दोहा और चौपाई” शीर्षक दिया है। सभी घटनायें किस्से और कहानियाँ इसी उपन्यास के पन्नों के भीतर छुपे हुए थे। जिन्हें उपन्यास पढ़ने से जी चुराने वाले पाठकों के लिए छोटे – छोटे किस्सों के रूप में लिखा है।
“आगरा के दीवाने-ए-खास में कवियों को अक्सर तीन नदियों का नाम लेते पाया जाता है। अपनी कविताओं में वे इरावती ,ताप्ती और गोदावरी नदियों की चर्चा जरूर करते हैं। इरावती ही रावी नदी है। असल में इन तीन नदियों के नाम से तीन महान कवियों को याद करते हैं वे लोग।
रावी के किनारे लाहौर में मुंशी चंद्रभान ब्राह्मण का जन्म हुआ था। बादशाह उनके लिए कहते हैं – ‘फ़ारसी का समझदार हिन्दू’
जहाँगीर के समय कवि चंद्रभान युवा थे और बादशाह के पसंदीदा कवियों मे से थे।
ताप्ती के किनारे नासिक में कवीन्द्राचार्य सरस्वती का जन्म हुआ था। वे बाद में बनारस चले आये थे।
लम्बी कद – काठी के दबंग इंसान थे। कमर पर एक चद्दर बाँधा करते थे और उसी वेश में राजा से रंक तक सबसे मिला करते थे।
कवि जगन्नाथ का जन्म हुआ था गोदावरी के किनारे। संस्कृत के वो प्रकाण्ड विद्वान और कवि माने जाते थे। जहाँगीर बादशाह ने जब सुना था कि वो फ़ारसी के भी ज्ञाता हैं तब उन्हें बुलवा भेजा और अपना राजकवि बनाया था। इसके बाद वो शाहजहाँ के भी राजकवि रहे। शाहजहाँ ने उन्हें पण्डितराज का ख़िताब भी दिया। इनकी कविताओं के कारण ही शाहजहाँ को दिल्लीश्वर – जगदीश्वर भी कहते हैं