विदेशी यात्री का रोज़नामचा ( डायरी )
इस समय टेवरनियर की उम्र होगी ,यही कोई अड़तीस या चालीस साल।
आजकल उसे एक तरह की बीमारी हो रही है। जो भी चीज देखता है सोचता है। ऐसी चीज तो सपने में देखी है ,और सपने में देखी हुई चीज को देखकर सोचता है जागकर देखी है शायद !
अजीब सी उधेड़बुन में फँस जाता है, यात्री के साथ -साथ व्यापारी भी है।
हिंदुस्तान पहले भी कई बार आ चुका है। इसबार शायद तीसरी या चौथी बार आया है।
उसके दिमाग में व्यापार के लिए खरीदे हाथी दाँत , ह्वेल मछली की सुगन्धित चर्बी ,रेशम – मसलिन के साथ दरिया का पानी भी चक्कर काट रहा है।
उठकर टेवरनियर गांव की तरफ चला गया। सूबा – ए – बंगाल में जितना जाड़ा पड़ता है ,उतना तो पेरिस में बसंत के दिनों में पड़ता है।
देहातों में इंसानों और गाय -भैंसों के रहने की जगह में ज्यादा अंतर नहीं दिखता। एक साथ ही रह लेते हैं जानवर और इंसान।
इस बार वह यहाँ एक बुनकर के यहाँ ठहरा है जिस कमरे में रुका हुआ है उसी कमरे में ताँत की बुनाई होती थी शायद।
कमरा अच्छा – खासा बड़ा था ,लेकिन इस बार वहाँ बुनाई का काम नहीं हो रहा था।
भीतर आकर उसने चर्बी से जलने वाली रौशनी को ज्यादा कर दिया और ,अपनी मोटी जिल्द वाली कॉपी लेकर लिखने बैठ गया।
इसबार जब पेरिस से चलने लगा था तो ,इतिहास प्रेमी सैमुअल साहब ने बार -बार कहा था। हिंदुस्तान के बारे में जो कुछ भी देखिएगा लिखियेगा जरूर। पहले भी लिखता था लेकिन उसमे ज्यादातर अशर्फी ,डुकाट या हीरे पन्ने की ही बात होती थी।
इसबार उसने अपना नोट लिखना शुरू किया —
यात्रा और व्यापार के सिलसिले में हंगरी ,पोलैंड ,मास्को ,इटली और स्पेन भी गया हूँ – देखा है की वहाँ पर लोग खाने में दालचीनी का उपयोग बहुत करते हैं। जबकि दालचीनी सिर्फ लंका में पैदा होती है। यह बहुत महँगी होती है। इसे सीलन और नमी से बचाना पड़ता है। अगर इसकी खुशबू उड़ गयी तो दाम भी गिर जाता है।
आजकल कोचीन में किसान लोग एक तरह की दालचीनी की खेती कर रहे हैं। यहाँ एक तरह की जंगली दालचीनी अपने आप पैदा होती है। इसे गरीबों की दालचीनी कहा जा सकता है।
सस्ती भी है और चेहरे मोहरे आकर प्रकार में असली दालचीनी लगती है। ज्यादा दिन तक रखने से इसकी खुशबू अपने आप उड़ जाती है।
टेवरनियर लिखते हैं की , मै सोच रहा हूँ कि क्यों न इस जंगली दालचीनी को ,यूरोप के बाजारों में ऊँचे दाम पर बेचूँ और मुनाफा कमाऊँ ?
इसके बाद टेवरनियर को मोर का ध्यान आया। उसने लिखा –
हिंदुस्तान में जो भी परदेशी आयेगा ,मोर उसे दिखाई पड़ेगा। यह बहुत ही चालाक पक्षी होता है ,दिखने में खूबसूरत होता है। खाने में भी जायकेदार होता है। लेकिन उन्हें मोर देखकर लालच में पड़ने कि जरूरत नहीं है ,क्योंकि यहाँ मोर मारना मना है।
आज का सबसे महत्वपूर्ण नोट लिखते हुए टेवरनियर ने ‘ दीमक ‘ के बारे में लिखना शुरू किया –
उसने लिखा – ” हिंदुस्तान में दीमक एक ऐसा कीड़ा है जिसका कोई दमन नहीं कर सकता। यहाँ तक कि राजा भी नही।
इस देश में अगर व्यवसाय वाणिज्य करना है तो अपना बंदरगाह होना चाहिये। जहाँ लम्बा सफर करके आने के बाद कोई जहाज विश्राम कर सके।
विश्राम से मतलब जहाज की रंगाई – पुताई और मरम्मत से है। यह काम गोवा में पुर्तगाली कर सके थे। इसीलिए व्यवसाय के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ गये थे। लेकिन अंग्रेजों का हिंदुस्तान में कोई अपना बंदरगाह न होने के कारण ,वे कुछ विशेष अभी तक नही कर पाये।
लम्बा रास्ता तय करने के बाद जब जहाजों को मरम्मत करने के लिये ,एक जगह खड़ा कर दिया जाता है। तब मौका मिलते ही ‘दीमक ‘हमला करती है। जहाज की गीली लकड़ी को कुरेद – कुरेद कर खाना शुरू कर देती है।
नतीजतन जहाज की जिंदगी कम हो जाती है।