भारतीय चिकित्सा शास्त्र और विदेशी यात्री
रात भर का शोर शराबा आखिरी पहर में जाकर कम हुआ ,तब कहीं जाकर बामन भट्ट को नींद आयी।
उठते – उठते देर हो गयी। इसलिये टेवरनियर कब उठकर , शहर देखने चला गया था उसे पता ही नहीं चला।
शहर घूमकर टेवरनियर वापस आये और बोलने लगे –
” शहर घूमते – घूमते नदी के किनारे पहुँच गया था। वहाँ देखा कुछ हिन्दू लोग अपने शरीर को बड़ा कष्ट दे रहे थे। उसमे से कुछ तो सूरज को देखते हुए एक टाँग पर ही खड़े थे। अपने आपको कष्ट देने से क्या ईश्वर मिलते हैं ? “
बामन भट्ट ने शांत भाव से कहा –
” कुछ लोगों का विश्वास है कि इस जन्म में कष्ट उठाने से ,अगले जन्म में अकूत धन संपत्ति के स्वामी के घर में पैदा होंगे। “
टेवरनियर ने कहा – मूर्ख ,अनपढ़ ,साधारण आदमी ,इन बातों को सही मानकर विश्वास कर लेता है। मुझे तो इनलोगों के बारे में बड़ा संदेह है।
बामन भट्ट ने कुछ नहीं कहा।
सूरत से आगरा रवाना होने के समय देवी देवताओं के बारे में काफी बातचीत हुई थी। अपने ज्ञान के मुताबिक भट्ट जी ने जवाब दिया था। टेवरनियर के सवाल थे कि ,खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे।
आश्चर्य और व्यंग्यमिश्रित भाव के साथ टेवरनियर बोले ” यहाँ तो हिन्दू लोग दिन में तीन बार नहाते हैं।
यूरोप में अगर यही करें तो शर्तिया मौत। “
बामन भट्ट अब अपने आप को रोक न पाये ,बोले –
देखिये साहब ,हमारा धर्म हमारा है ,आपका धर्म आपका।
हमने तो आपसे कभी नहीं कहा कि आप हमारा धर्म ग्रहण कीजिये – हम आप पर इसके लिए , किसी भी तरह का दबाव नहीं डालते। न आप कि आराधना पद्धति को सही या गलत ठहराते हैं।
बामन भट्ट कि इस बात ने टेवरनियर को प्रभावित कर दिया। मन ही मन आगा खाँ को धन्यवाद दिया कि उन्होंने ,बामन भट्ट जैसा हीरा चुनकर दिया है। सभी एक साथ खाना खाने बैठे।
खाना खाने से पहले भट्ट जी ने ,अपनी थाली के चारो तरफ जल छिड़का और ,अपनी थाली के किनारे पर पितरों के लिए अन्न निकाल दिया।
पहली बार हिंदुस्तान आये टेवरनियर का कौतूहल थम ही नहीं रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था कि ,क्या यहाँ के लोग अंधविश्वासी हैं ?
या इन सब चीजों के पीछे , कोई न कोई वाजिब कारण है।
अभी वो लोग खाना खा ही रहे थे कि तभी डॉक्टर एलेक्जेंडर आ गया। धूप के ताप से पसीने – पसीने हो रहा था और लाल मुँह के बन्दर जैसा दिख रहा था।
सूरत में बंदरगाह के किनारे ऐसे लाल मुँह के विदेशी अब बहुतायत में दिखने लगे हैं। जो यात्रा और व्यापार के उद्देश्य से हिंदुस्तान कि यात्रा करते हैं ,और यहाँ के मौसम कि बेरुखी से परेशान होते हैं।
गर्मी से परेशान डॉक्टर कहने लगा – अरे बाप रे ! इतनी गर्मी तो बर्दाश्त नहीं होती।
सामने के दरवाजे के पास एक मिट्टी का घड़ा रखा था। उसे दिखते हुए बामन भट्ट ने कहा ” उसमे इमली का पानी है ,पी लीजिये गर्मी से राहत मिल जायेगी।
लकड़ी के बर्तन से पानी निकालकर उसने पी लिया ,अचानक से बहुत राहत महसूस किया।
विदेशी डॉक्टर होने के कारण , ज़रा सा आश्चर्य में भी पड़ गया और विस्मय के भाव के साथ, टेवरनियर की तरफ देखने लगा।
टेवरनियर ने कहा ” लगता है आप लोगों को थोड़ी बहुत डॉक्टरी भी आती है। “
भट्ट जी ने कहा ” इसमें सीखने वाली कोई बात नही है। हिंदुस्तान में जगह – जगह इमली के भारी – भरकम पेड़ देखने को मिलेंगे।
इसके फल और पत्तियों का उपयोग करना आना चाहिये।