“यात्रा और सराय“
हिंदुस्तान को देखने आये चार विदेशी नौजवान इस समय , बेगम की सराय के खुले आँगन में अपना सामान बाँध रहे थे।
चित्रकार अपना काम खत्म करके , एक बड़े से पेड़ के नीचे बैठ कर चित्र बना रहा था। चित्रकार मलियेर के सामने , रसोईघर में काम करने वाली गुर्जर औरत आँख के सामने घूँघट किये खड़ी थी। उसकी आँख में आश्चर्य के भाव थे।
डॉक्टर एलेक्जेंडर भी गायब था। शायद सराय के किसी कमरे में , मरीज देख रहा होगा।
बेगम की सराय शहज़ादी जहाँआरा के आदेश पर बनायी गयी थी। यहाँ रहने के लिए ३०-४० कमरे थे।
खाना पकाने के लिए गोश्त ,मुर्गी ,मक्खन ,तेल – मसाला सब मिल जाता है। बस इसके लिये थोड़े से पैसे लगते हैं। रहना मुफ्त है।
टेवरनियर के भाई डैनियल ने कहा ” अभी तक आगा खांँ के आदमी तो नहीं आये। “
टेवरनियर परेशान हो उठा। एक महीना हो गया था हिंदुस्तान आये। अब लम्बे सफर में ऐसा विश्वासी व्यक्ति चाहते थे । जो यहाँ की भाषा समझ सके ,दुभाषिये का काम कर सके। खरीददारी में मदद कर सके ,ठगे जाने से बचाये ,आने वाली मुसीबतों से आगाह करे।
हिन्दू -मुसलमानों के रीत – रिवाज़ की जानकारी देने के अलावा ,तीज त्यौहार की भी जिसे जानकारी हो।
जो आनेवाले थे वह बादशाह अकबर के ज़माने के प्रकांड पंडित की पंक्ति में , सबसे आगे रहने वाले दामोदर भट्ट के नाती बामन भट्ट थे।
वे हिन्दू -मुसलमानों के धर्म के रहस्यों को समझने वाले व्यक्ति थे।
विचारों में खोया हुआ टेवरनियर ,आँखों के ऊपर हाथ का पर्दा करके ,सूरज कितने ऊपर पहुँचा है देखने गया।
सर झुकाते ही उसकी नजर पड़ी एक हट्टा – कट्टा ,गंजा और नंगे बदन का आदमी कच्ची दीवार पार करके बेगम की सराय में घुसा।
उसने एक पतला सा कपड़ा बाँये कंधे पर डाल रखा था। दोनों पाँव धूल से भरे हुए थे।
टेवरनियर को देखकर बोला मँशिए ! मै हूँ बामन भट्ट।
सारे हिंदुस्तान में उस समय कोस का नाप ही चलता था। सारे दिन धूप में चलने के बाद शाम को , टेवरनियर का दल सिंरोज पहुँचा। बामन भट्ट उन्हें एक सराय में ले आये। घोड़ों पर से सामान उतारकर उन्हें ,चारा डालकर सराय के खुले अहाते में बाँध दिया गया।
सराय के आसपास के लावारिस कुत्तों ने, घोड़ों को अजूबा समझकर परेशान किया।
एक कुत्ता तो घोड़े की लात खाकर सारी रात रोता रहा। टेवरनियर तो अपने भाइयों के साथ खाना खाने के बाद आराम से गहरी नींद में सोता रहा। उनके ऊपर कुत्तों के भौंकने या रोने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। लेकिन बामन भट्ट रात भर जगता रहा ,उसे कुत्तों के भौंकने की आवाज के कारण नींद नहीं आयी।
सराय से मैदा , चावल ,मक्खन ,साग और सब्जी लेकर अपना खाना बनाकर खाया। चारपाई खींचकर सोया भी पर जागता ही रहा।
ताज्जुब है ,हिंदुस्तानी कुत्ते होकर भी क्या इन्होंने कभी घोड़े नहीं देखे थे ? इतना चिल्ला क्यों रहे हैं ?
खुद से ही सवाल करते हुए बामन भट्ट को जाकर आखिरी पहर में नींद आयी।