समुद्र का किनारा और रोमांचक यात्रा
मुग़लशाही के समय की ही बात है –
हिंदुस्तान का एक किनारा धूप से झिलमिला रहा था ,जहाँ ऊँची नीची लहरों के किनारे जहाजों का आना – जाना चल रहा था।
अलग -अलग निशान थे उन जहाजों के ऊपर ,अपने -अपने देश की पहचान के लिए। जहाजों के ऊपर और आसपास समुद्री चिड़ियों की भीड़ थी। वे खाने की तलाश में आसपास मंडरा रही थी ,और कर्कश आवाजें भी निकाल रही थी
ठीक उसी वक़्त दूर, जहाँ समुद्र और आसमान आपस में मिल रहे थे ,एक बहुत बड़ा जहाज़ उभर आया। उसके हल्के हरे रंग की पतवार तेज धूप के कारण सफेद दिख रही थी
धीरे – धीरे जहाज़ साफ़ नजर आने लगा। ज्यों -ज्यों बंदरगाह के पास पहुंचने लगा। त्यों – त्यों लगने लगा बहुत लम्बा सफर तय करके आया होगा।
जहाज़ के खुले हिस्से के ऊपर ऊँचे तख़्त पर एक नक्शा फैलाये ,उसे बड़े गौर से एक तीस पैंतीस साल का नौजवान देख रहा था। उसके चेहरे पर घनी लाल रंग की दाढ़ी थी। उसके पास तीन युवक और खड़े थे। दाढ़ीवाले युवक ने खुश होकर कहा “बेशक हम सूरत के दरवाजे पर आकर खड़े हैं।
तभी पीछे विशाल लम्बे चौड़े शरीर वाला एक वृद्ध जिसके सिर पर एक तिरछी टोपी लगी थी। उस टोपी पर पक्षी के पंख लगे हुए थे ,हाथ में चमड़े का चाबुक था। यह और कोई नहीं जहाज़ का कप्तान था।
उसने उत्तेजित युवकों की तरफ देखा ,और दाढ़ी वाले युवक के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला। हम सूरत के बंदरगाह पर पहुंच चुके हैं यह जानने के लिए कम्पास की क्या जरूरत है। सूरत की हवा में वैसे भी पानी तैरता रहता है।
कप्तान आँतोंयन जरा रूककर बोला हरमूज़ ,बसरा ,सिराज ,इस्फ़हान ,मस्कट होते हुए मै बादशाह अकबर के जमाने से सूरत आ रहा हूँ।
जब कभी पेरिस जाता था ,तब तुम्हारे पिता गेब्रियल से भी भेंट करता था। कल रात समुद्री डाकुओं से जहाज़ को बचाने में तुम लोगों ने जिस तरह से बहादुरी दिखाई ,उससे मै समझ गया की तुम्हारी परवरिश किसके हाथों से हुई है।
कप्तान ने लंगर डालने और नीचे उतर कर सब देखने का आदेश दिया डेक मास्टर को।
“फिर बोला – पेरिस जाने पर जब मै तुम्हारे घर जाता था तब ,मै हमेशा देखता था। दीवार पर कम से कम तीन मानचित्र तो टँगे रहते थे। दो ग्लोब दिख जाते थे ,तरह -तरह के लीवर वाली बंदूकें -पिस्तौल – ऐसा लगता था मानो फायर आर्म्स की नुमाइश हो रही हो।
पिताजी ऐसे ही थे ?
ये क्या कह रहे हो क्या वो अब जीवित नहीं है ?
जी हाँ उनकी मृत्यु को अब सात साल हो चुके हैं। अपने बचाव के लिए हमेशा बन्दूक रखते थे ,लेकिन करुणा ही उनके जीवन का लक्ष्य था।
हमारी तरह वो कभी घर से बाहर नहीं निकले ,लेकिन हमारे मन में करुणा का बीज उन्होंने बचपन में ही बो दिया था।
पहाड़ ,दरिया ,पेड़ – पौधे,पशु -पक्षियों के बारे में तरह -तरह के किस्से सुनाया करते थे। मै सुनते – सुनते सोचा करता था ,क्या हम कभी इन देशों में जा पायेंगें।
तुममें से कोई एक चित्रकारी भी करता है न ?
जी हाँ। हमारे बड़े भाई मेलाशियोर। वे पेरिस में मानचित्रकार हैं।
टेवरनियर ने डैनियल के पीछे खड़े युवक की तरफ देखकर बोला –
ये मलियर-चित्रकार है।
ये हिंदुस्तान के लोगों ,पशु पक्षियों ,पेड़ पौधों के चित्र बनाकर ले जायेगा ,और उसका नाम एलेक्जेंडर है ,वो डॉक्टर है।
टेवरनियर के पिता गेब्रियल ! अपने पेरिस के घर में मानचित्रों को देखकर, भूगोल के कठिन मूसलों पर विचार करते थे।
मानचित्रों पर लाल निशान लगाते थे। शहरों की समुद्र से ऊँचाई का बारीक अध्ययन करते थे
उस समय एक नन्हा बालक अपने पिता को बड़े ध्यान से देखा करता था।
वही बालक आज का यात्री जॉन बेप्टिस्ट – टेवरनियर है।
आँखों में उत्सुकता है हिंदुस्तान को देखने और समझने की ,व्यापार करने की।