हमारी संस्कृति और सभ्यता, हमे समय समय पर, भारतीय होने का बोध कराती है….
ऋतुओं के बदलते ही हमारी, संस्कृति और सभ्यता भी चैतन्य हो जाती है,कभी किसी तो कभी किसी तीज त्योहार से मिलवाती रहती है । इन त्योहारों का समय,मन के साथ-साथ शरीर को भी स्फूर्ति से भर देता है । देखते ही देखते जगमगाते हुये शहर के साथ, लोगों का रेला घरों से बाहर निकलता है ।
शरद ऋतु का आगमन,पूरे वर्ष मे सबसे विशेष सा लगता है……एक तरफ तो माँ दुर्गा का पंडाल सजा दिखता है…वहीं दूसरी तरफ काफी हद तक तामसिक खान पान से परहेज की तरफ हिंदू समाज दिखता है…..
दशहरे की रौनक,बाजारों मे मेला,कहीं बच्चों की खिलखिलाहट,कहीं किसी वस्तु या मेले से संबंधित किसी अन्य गतिविधि मे, शामिल होने के लिए लिये मचलता बच्चा ।
अट्टहास करते हुये रावण की आवाज, रामलीला के मैदानों की सीमा से बाहर भी लाउड स्पीकर के माध्यम से सुनायी पड़ जाती है…..ऐसा लगता है राक्षसी सेना,अपने अभिनय को जीवंत करने की पुरजोर कोशिश मे लगी हो….दर्शक दीर्घा की तरफ देख देखकर,अपने पात्रों मे जान फूंक रही हो, और बोल रही हो”बुराई पर अच्छाई की विजय”की बात कलयुग मे बार बार दुहराई जाती रहेगी…..
अचानक से रामलीला के एक महत्वपूर्ण पात्र, कुम्भकरण को नींद से जगाने का बार-बार असफल होता हुआ प्रयास दिखाई पड़ता है ।असुर सेना और भगवान राम की सेना का, भयंकर युद्ध दिखाई पड़ता है ,युद्ध निश्चित तौर पर यह बोलता हुआ लगता है,कि एक व्यक्ति का अहम् दोनो पक्षों की सेनाओं की परेशानी का कारण बनता है ।
रामलीला सिर्फ मनोरंजन का विषय नही है…..यह हमारी पौराणिक कथाओं को जीवंत तरीके से, मंच पर प्रस्तुत कर,एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपने का सफल प्रयास है….
जगह जगह लगे हुये मेले….वहाँ पर मिलने वाली खान पान की तरह तरह की वस्तुयें, अपनी खुशबू से ही अपनी तरफ बुलाती हुई महसूस होती हैं ।आकाश को छूने की कोशिश करते हुये झूले,नीचे खड़े होकर ऊपर देखने पर,ज़रा सा भय के भाव को लाते हैं ।लेकिन यदि उनके साथ सैर पर चलो तो,आकाश को छूने की कोशिश मे,झूलों के साथ-साथ व्यक्ति भी सहभागी बन जाता है…..
स्याह काले आकाश से, चाँद और तारे उत्सुकता और कौतूहल के भाव से जमीं के नजारे को एकटक निहारते हुए नज़र आते हैं……ऐसा लगता है मानो,झूले माध्यम बन गये हो,दूर आकाश की सैर का….
माँ सिद्धिदात्री के दिन से ही, दशहरे का उत्साह सारे वातावरण मे दिखाई देने लगता है….माँ के अलग-अलग रूपों के साथ बीते हुए दिनों के साथ भक्त, माँ को अपने आसपास ही महसूस करने लगते हैं….
विजयादशमी वाले दिन, माँ की विदाई, भावातिरेक मे बहा देती है….सिंदूर के साथ खेलती हुई सुहागन महिलायें, माँ शक्तिस्वरूपा के द्वारा दिये गये आर्शिवाद कोअपने आंचल मे समेटती नज़र आती हैं….
रामलीला हो, दशहरे का मेला हो,या माँ दुर्गा का पंडाल,हमारी सभ्यता और संस्कृति का विशेष अंग है….माँ दुर्गा के आर्शिवाद को, किसी एक प्रांत या समुदाय से बाँध कर नही रखा जा सकता…..
मेरे विचार से माँ की कृपा और आर्शिवाद, हर सकारात्मक विचार और प्रयास के साथ हमेशा रहता है…..
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That’s outstanding post
Thanks😊
Powerful start… हमारी संस्कृति और सभ्यता, हमे समय समय पर, भारतीय होने का बोध कराती है….
Beautifully expressed from start to end.
मेरी पोस्ट पढ़कर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिये धन्यवाद 😊
बहुत सुंदर और सटीक रचना
धन्यवाद 😊