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MythologyShort Stories

मरु भूमि और उत्तंग मेघ

by 2974shikhat November 24, 2021
by 2974shikhat November 24, 2021

महाभारत के युद्ध के बाद भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों से, द्वारका वापस जाने की अनुमति मांगी।

पांडवों ने वासुदेव से अश्वमेध यज्ञ के समय उपस्थित रहने का , विनम्र अनुरोध किया। वासुदेव ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

श्री कृष्ण की द्वारका यात्रा

श्री कृष्ण की द्वारका यात्रा के समय अनेक शकुन होने लगे। अचानक से तेज हवा चलती ,उनके रास्ते में आने वाले कंकड़ ,पत्थर ,धूळ मिट्टी को उड़ा कर रथ को आगे बढ़ने के लिए रास्ता बना देती।

ऐसे ही यात्रा करते – करते श्री कृष्ण का रथ मारवाड़ प्रदेश पहुंच गया। वहां पर श्री कृष्ण को उत्तंग मुनि के दर्शन हुये। भगवान श्री कृष्ण ने मुनि का पूजन किया ,उसके बाद उत्तंग मुनि ने वासुदेव का स्वागत -सत्कार किया और उनके विशाल रूप के दर्शन की प्रार्थना की।

भगवान कृष्ण का ईश्वरीय रूप

मुनि की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए वासुदेव ने, अपने उसी ईश्वरीय रूप का दर्शन मुनि को कराया, जिस रूप को रणभूमि में अर्जुन को दिखाया था।

भगवान कृष्ण का वह रूप हजारों सूर्य के समान दिख रहा था। वह रूप अग्नि के समान तेज से भरा हुआ सम्पूर्ण आकाश को घेरे हुआ था। अद्भुत वैष्णव रूप को देखकर मुनि आश्चर्यचकित हो गये और ,भगवान की स्तुति करने लगे।

स्तुति करने के बाद कहने लगे देवेश्वर ! अब आप अपने इस अविनाशी रूप को समेट लीजिये। मुनि की बात सुनकर श्री कृष्ण ने कहा, मुनिवर अब आप मुझसे कोई वर मांगिये। मुनि ने कहा पुरुषोत्तम ! आपके इस विराट रूप के दर्शन के बाद मुझे किसी भी वर की इच्छा नहीं ,यही मेरे लिए सबसे बड़ा वरदान है।

मुनि की वर प्राप्ति

श्री कृष्ण ने कहा मुनिवर मेरा दर्शन अमोघ होता है ,इसलिए आपको मुझसे कोई न कोई वर मांगना ही पड़ेगा। मुनि ने कहा की यदि आप मुझे वर देना जरूरी समझते हैं तो, इस मरु प्रदेश में मुझे जल प्राप्त हो सके यह वर दीजिये। क्योंकि इस मरु प्रदेश में जल मिलना बहुत ही दुर्लभ है।

इसके बाद वासुदेव ने अपने तेज को समेटा और मुनि से कहा, जब आपको जल की आवश्यकता हो तब मेरा स्मरण करियेगा। यह वर देकर वो द्वारका की तरफ चले गये।

चांडाल के रूप में देवराज इंद्र

एक दिन उत्तंग मुनि का प्यास के कारण गला सूख रहा था। मरुभूमि की तपती हुई रेत के कारण, मुनि अपनी चेतना खोने लगे। मरु भूमि में जल की खोज में घूमते हुए वासुदेव को याद करने लगे।

इतने में उन्हें नंग – धडंग घूमता हुआ एक चांडाल दिखाई दिया, जिसके पूरे शरीर पर धूळ और मिट्टी जमा थी। वह चारों तरफ से कुत्तों के झुण्ड के द्वारा घिरा हुआ था। कमर में तलवार बांधे और हाथ में धनुष वाण लिए वह अत्यंत ही भयंकर दिख रहा था।

महर्षि को प्यासा देखकर वह विकृत रूप से हँसने लगा। हँसते – हँसते मुनि से कहने लगा, उत्तंग ! प्यास से व्याकुल देखकर मुझे तुझपर दया आ रही है। मुझसे जल लेकर ग्रहण कर लो। चांडाल के बार- बार कहने पर भी मुनि ने ,जल नहीं ग्रहण किया और श्री कृष्ण को कठोर वचन कहने लगे।

क्रोधित होने पर चांडाल को भी अपशब्द कह डाले ,लेकिन जल नहीं ग्रहण किया। मुनि के इंकार करने पर और डाट खाने के बाद चांडाल अपने कुत्तों के समूह के साथ, वहां से अंतर्ध्यान हो गया।

इस घटना के बाद मुनि खुद को अपमानित सा महसूस करने लगे, और वासुदेव का ध्यान कठोर वचन और दुखी मन से करने लगे। उन्हें बार- बार ऐसा लगता था की वासुदेव ने उनके साथ, जानबूझ कर छल किया है। इतने में उसी समय शंख ,चक्र और गदा धारण किये हुये श्री कृष्ण वहां से गुजरे।

तब उत्तंग मुनि ने उनसे प्रश्न किया भगवन ! एक तपस्वी ब्राह्मण के लिए चांडाल के द्वारा दिया हुआ जल ग्रहण करना उचित था क्या ?

उत्तंग मुनि को वासुदेव द्वारा दिया गया उत्तंग मेघ का वर

अपनी आवाज में मधुरता व हास्य मिश्रित मुस्कान के साथ वासुदेव ने कहा मुनि ! वहाँ जैसा रूप धारण करके आपको जल देना उचित था वही किया गया। लेकिन ,आप उसे समझ न सके। मैंने आपके लिए वज्रधारी इंद्र से जल के रूप में अमृत देने की बात कही थी। लेकिन इंद्र ने मानव को अमृत देने की बात अस्वीकार कर दी।

मेरे बार बार प्रार्थना करने पर इंद्र चांडाल का रूप धर के आपको जल पिलाने आये थे। लेकिन आप ने क्रोध में आकर उनको डाट कर भगा दिया।

यह बात तो बीत गयी,अब मै आपको दूसरा वर देता हूँ। जब -जब आपको पानी पीने की इच्छा होगी, तब – तब मरुभूमि के आकाश में जल से भरे हुए मेघों की घटा घिर आयेगी।
ये मेघ आपको शीतल और मीठा जल अर्पण करेंगे और ,उत्तंग मेघ के नाम से इस पृथ्वी पर प्रसिद्ध होंगे।
वासुदेव के इस वर से मुनि बहुत प्रसन्न हुये।

आज भी मरुभूमि में उत्तंग नामवाले मेघ वर्षा करते हैं। जो इस पौराणिक कथा को खुद के साथ जोड़ते हैं।

(यह कथा गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित महाभारत से पढ़ने के बाद अपने शब्दों में लिखी गयी ।
चित्र -प्रेरणा से, लेखक द्वारा रेखांकित)

lord KrishnaMahabharatMarwadPauranik kathauttang muni
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