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भागता हुआ वक्त
अपनी ही धुन मे चलते चलते राह मे
सरपट भागते हुए चला जा रहा था….
कभी समय,कभी अवधि, कभी काल
बोला मै तो अपने स्वभाव के मुताबिक
न दायें देखता हूँ न बायें….
कभी मुझे चंचल बताता है…..
अपने कर्मों के हिसाब से ही इंसान मुझे
बिगड़े हुये हालात हो या सुधरे हुए हालात हो….
मै तो इस मतलबी दुनिया से तंग हो चला…..
अब आप जल्दी बताइये आपको क्या कहना है….
वैसे आप बताइए आप कैसे मुस्कुराते हुए खड़ी हैं…..
देवता,दानव, ऋषि,मुनि आज तक
राजा हो या रंक हो हर किसी ने मेरे सामने
अब मेरी बातों को दिल से मत लगाइयेगा….
जन्म हो या मृत्यु हो….
सुनकर उसकी बातों को मै मुस्कुरा गयी…..
बोला आप से इतनी बातें इसलिये कर रहा हूँ….
मुझे वक्त के बातूनी स्वभाव पर ज़रा सा गुस्सा आ गया……
बातूनी स्वभाव को ज़रा सा परे करो….
मुझे वक्त,काल, समय या अवधि पर लिखने के लिए
अब ज़रा नज़रों को इधर फेरो…..
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बढ़िया विश्लेषण।
धन्यवाद 😊