भारत वर्ष की भूमि पर पौराणिक काल से बहती हुई नदियाँ, हमारी सभ्यता और संस्कृति की साक्षी रही हैं ……
आर्थिक संपन्नता,सांस्कृतिक विभिन्नता,विचारों की श्रेष्ठता,अकूत प्राकृतिक संपदा के साथ भारत वर्ष !प्राचीन काल से ही, “सोन चिरइय्या” की उपमा से विश्व मानस के पटल पर छाया रहा ….
भारत भूमि पर बहती हुई नदियों का, कलकल प्रवाह उनकी जीवंतता…
मैदानी इलाकों को समृद्ध करते हुए,अविरल बहते रहने का,स्वाभाविक स्वभाव….
धो दिया अविरल बहते हुए रास्तों पर,जनमानस के पापों को…
कमा लिया बहते हुए रास्तों पर, धर्म और आस्था की छाँव मे पुण्य को…
भारत वर्ष मे प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों जैसे नदी, पर्वत,वृक्ष आदि को देवस्वरूप मानकर….
उनकी आराधना करने का प्रचलन, आदिकाल से चला आ रहा है…
इसी क्रम मे जीवन दायिनी नदियों को, प्रमुखता दी गई है…
जीवन दायिनी के प्रति अपनी कृतज्ञता, आरती के माध्यम से, श्रद्धाभाव के साथ, जन समूह करता है,नदियों को पूजता है….
अभी हाल फिलहाल मे ,उपजी हुई आस्था नही है यह….
न तो एक दूसरे को देखकर, नदियों के प्रति आस्था, और पाप -पुण्य की बात उठी है…
बड़ा पुराना इतिहास रहा है नदियों का…
इनसे जुड़े आस्था और विश्वास का…
दिख जाती है कहीं ब्रम्हपुत्र! अपने लंबे चौड़े सफर के साथ….
कहीं दिख जाती है नर्मदा!कलकलाती हुई….
कहीं दिख गई क्षिप्रा,कहीं यमुना,कहीं अपने नाम के अर्थ मे ही मर्यादा की बात को बतलाती गोदावरी नदी सामने आई ….
उधर सिंधु नदी ! अपनी घाटी मे ‘मोहन जोदड़ो’ और ‘हड़प्पा’ जैसे प्राचीन शहरों को छुपा कर रखी हुई समझ मे आई….
दक्षिण भारत मे कावेरी नदी !अपने आर्शिवाद स्वरूप,दक्षिण भारत की जमीन को सींचती हुई दिखी….
अटल खड़े हुए हिमालय की तरफ नज़रों को फेरा, ‘गौमुख’नामक स्थान से ‘गंगोत्री हिमनद’ से निकलती हुई ‘भागीरथी‘दिख गई…
अपने सफर मे, ‘देवप्रयाग ‘ मे अनेक धाराओं को सम्मिलित कर,जलधारा ‘गंगा नदी’ के नाम से प्रवाहित होती दिखी ….
भारत भूमि पर कुछ कुछ वर्षों के अंतराल मे होने वाला कुंभ मेला!
नदियों के अविरल प्रवाह की सत्यता की बात कह जाता है…
प्रयागराज मे कुम्भ मेले के समय पाप पुण्य की बात ,आस्था और विश्वास के साथ ,जनमानस का सैलाब ,उमड़ता घुमड़ता दिखा….
प्रयागराज वह स्थान है जहाँ गंगा ,यमुना ,और सरस्वती का संगम है…..
कुम्भ मेले के दौरान, करोड़ों देशी विदेशी श्रद्धालुओं को, अपना आशीर्वाद देये हुए भी गंगा का जल,मलिन नही दिखा,जल की स्वच्छता लगातार बनी रही…
कारण! नदी मे जल का अविरल प्रवाह, और गंदे नालों का नदी मे न गिरना ,समझ मे आया….
गंगा नदी की स्वच्छता और,पवित्रता की बात अगर हम करें तो…
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत से नही, बल्कि मध्य से हमारा देश,औद्योगिक विकास की तरफ तेजी से बढ़ रहा था….
गंगा मे समाने वाले जलस्रोतों मे, भारी मात्रा मे प्रदूषक पदार्थो के साथ, हैवी मैटल्स भी समाते चले गये…
गंगा नदी का लंबा किनारा, लगभग 2,525 किलोमीटर का ,गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक का रहता है…
इतने लंबे सफर मे, गंगा की अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं…
सहायक नदियाँ अपने साथ, काफी मात्रा मे हैवी मेटल्स को गंगा नदी मे डालती हैं…
बी.बी.सी को दिये एक साक्षात्कार मे, ब्रिटेन के ‘टेम्स रा’ संगठन के प्रमुख ‘मार्क लाॅयड’ ने कहा कि,गंगा के प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह, उसमे गिरने वाले गंदगी के नाले हैं…
गंगा की साफ सफाई को लेकर, 2014-2015मे 2037 करोड़ रूपये की आरंभिक राशि के साथ ,’नमामि गंगे‘नाम की गंगा संरक्षण परियोजना शुरू की गई…
यह परियोजना पूरे देश को कवर करती है….
भारत के पांच राज्य उत्तराखंड, झारखंड, उ0प्र0,पश्चिम बंगाल और बिहार, गंगा नदी के रास्ते मे आते हैं….
इसके अलावा सहायक नदियों के कारण, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़
और दिल्ली के कुछ हिस्सों को भी यह परियोजना छूती है….
इस परियोजना का एक उद्देश्य, जल पर्यटन को बढ़ावा देना भी है….
गंगा नदी का अपना खुद का इकोसिस्टम है…
गंगा की निर्मलता को हासिल करने के दो उपाय हैं…..
1-सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाये
2-निर्माणधीन परियोजनाओं को निरस्त किया जाये
गंगा की गाद को अविरल बहने दे,क्योंकि अनेक अनुसंधानों से यह बात सिद्ध होचुकी है कि….
गंगा की गाद मे,लाभप्रद कीटाणु ‘कालिफाज’ गंगा को स्वयं साफ करने की क्षमता रखते हैं….
लेखक और वरिष्ठ अर्थशाष्त्री ‘डाॅ भरत झुनझुनवाला’ की बात जनसमुदाय को सहमत करती है कि…
“अपनी शुद्धि का काम गंगा स्वयं करती हैं…
उसे करने के लिए एक बड़ी राशि को खर्च करने की क्या जरूरत है?
बस गंगा की धारा को अविरल बनाये रखना चाहिए”
यह बात भारत वर्ष मे सांस्कृतिक सभ्यता, आस्था और विश्वास से जुड़ी, सभी नदियों पर लागू होती है…. क्योंकि नदियाँ ही, जीवन दायिनी है….
(सभी चित्र internet से )