न हूँ मौसम विज्ञानी ,न अर्थशास्त्री ,न राजनीतिज्ञ ,न ही ज्योतिष विज्ञान के ज्ञान की धनी। नही होता पास हमारे ढेर सारे ज्ञान का पिटारा ,नही होता शहद में लिपटे हुए शब्दों के छलावे से, खुद को बेहतर दिखाने का दिखावा। कहते हैं ज्ञानी और विद्वान खुद को बेहतर बनाना है तो दूसरों की कमियों को देखना छोड़ दो। अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में मोड़ दो।
अनुभव भी अनुभवी विद्वानों की बातों को सही मानता है।
सोच रही थी कि ,आइना और वजन नापने की मशीन कितना सटीक बोलने वाले होते हैं। चमचमाते हुए दर्पण क्या मन के दर्पण से व्यक्ति को अलग- थलग रख सकते हैं?
अगर सामने लगा हुआ आइना व्यक्ति का प्रतिबिम्ब दिखा सकता है तो मन का दर्पण !अच्छाइयां और बुराइयां क्यों नही दिखा सकता ?
फिलॉसफी वाली बातों से अलग जाकर ,अगर बात वजन नापने की मशीन की करो और गहराई में जाओ तो ,सरकारी तंत्र में सरकार ने पूरा एक विभाग ही बना रखा है।
महत्व नापतौल का इतना की अदालतों में भी न्याय की देवी को तराजू के साथ , आँखों में पट्टी बांध कर खड़ा दिखाया जाता है।
लेकिन ,हमारी बात तो एक छोटे से दायरे में आकर सिमट जाती है ,जब वजन नापने की मशीन वजन को बढ़ा चढ़ा कर दिखाती है।
यहाँ पर मानव मन हठी हो जाता है। न जाने क्यों , मशीन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह (?) लगाता है ?
समय बरसात के मौसम का है।
सुबह की शुरुआत कभी खुशनुमा मौसम के साथ ,कभी उमस भरी गर्मी साथ में बिजली के बिल की मार तगड़ी।
वैसे हम भारतीय और ऊपर से दिल्ली वाले खाने पीने के बेहद शौक़ीन। मौसम के हिसाब से जीभ पर स्वाद के चटोरेपन का रंग चढ़ता है।
लेकिन घर में लगा हुआ आइना, और किसी कोने में छुपा कर रखी हुई वजन नापने की मशीन ,चीख-चीख कर आगाह करते हुए समझ में आते हैं।
ऐसा लगता है मानो कह रहे हों हठी मन वाले मानव ! यही रुक जाओ।
बरसात के मौसम में , जीभ के चटोरेपन के कारण होने वाली हानि को ज्योतिषशास्त्र भी नही रोक पायेगा। घर का अर्थशास्त्र भी हिचकोले खायेगा। राजनीतिज्ञ और मौसम विज्ञानी की बात मानो या न मानो ,बरसात के मौसम में किये जाने वाले परहेज और स्वास्थ्यवर्धक खाने को ही बेहतर जानो।