दिनांक - ५ दिसम्बर २०२३
कहते हैं न कि हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड अभी कुछ दिन दूर है ,तब तक ज़रा गुलाबी सर्दी का भरपूर मज़ा लीजिये।
आजकल के मौसम में मुनमुनी सी धूप ,सुबह और देर शाम की हवाओं के साथ ठंडी हवाओं का झोंका ,मसाले वाले खाने की खुशबू ,ये सब बातें गुलाबी सर्दी की हमसाया सी।
मानव स्वभाव है की शरद ऋतू की आहट के साथ ही उमस वाली गर्मी को भूल जाना चाहता है , लेकिन गुलाबी ठण्ड का भी इंतज़ार करना पड़ता है। ये कहीं और के मौसम की बात नहीं ,ये अपना ही शहर है ‘महानगर दिल्ली’।
शहर ऐसा की सुविधाओं के साथ – साथ समस्याओं की कोई कमी नहीं।
अब अगर रोना -धोना लेकर बैठ जाओ तो प्रशासनिक अधिकारियों की उठा बैठक दिखती ,और सार्वजनिक सुविधाओं की बात पर जन – प्रतिनिधियों की दौड़ धूप और कार्यक्षमता पर लगा हुआ प्रश्न चिन्ह हटने का नाम ही नहीं लेता।
समस्याओं के साथ ही सामान्य नागरिक को ,हर हाल में अपना जीवन जीना पड़ता है। कुछ दिन पहले तो हमारे शहर में प्रदूषण का यह हाल था कि, घर से बाहर निकलते ही दम घुटने का सा अहसास होता था। समाचार पत्रों के माध्यम से पता चलता था की अमुक राज्य ने पराली जलायी , जानबूझ कर हमारे शहर से अपनी दुश्मनी निभायी।
सामाजिक जीवन में आरोप प्रत्यारोप का दौर चालू हो जाता है ,ये हर साल की बात है कुछ नया नहीं।
हवा में प्रदूषण का स्तर अभी भी बढ़ा हुआ है ,यह समस्या जाने कब खत्म होगी।
शहरवासी अपनी सांसों को स्वस्थ रखने के लिए या तो घर के भीतर बंद हो जाता है, या तो कोविड समय की याद दिलाते हुए मास्क की शरण में चला जाता है। अभी भी हाल कुछ अच्छा नहीं।
हम भी अपने इलाके का प्रदूषण स्तर समय -समय पर देख लिया करते हैं ,उसके हिसाब से दैनिक जीवन अपनी पटरी पर चलता है।
गुलाबी सर्दी के साथ ही हमारे शहर के युवा माता पिता चिंताग्रस्त दिख रहे हैं। तीन से चार साल की उम्र वाले बच्चों के अभिवावकों का चिंतित होना वाज़िब है। नर्सरी एडमीशन की दौड़ उनके चेहरों की मुस्कुराहट को धूमिल करती है।
महानगर दिल्ली में , नर्सरी में मनचाहे स्कूल में एडमीशन भी बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। एक समय हम भी इस वाज़िब समस्या के साथ थे। अब युवा माँ बाप को परेशान देखकर मन यही कहता है।
अभी तो जीवन के सफर में बहुत सारे ऐसे पल आयेंगे ,जब बच्चों की उंगली पकडे माँ बाप सशंकित से नज़र आयेंगे।
शिक्षण संस्थाओं की मनमानी और पारदर्शिता का अभाव ,इस समस्या की जड़ समझ में आता है।
लेकिन बात ये भी खरी – खरी की छोटे बच्चों का उज्जवल भविष्य इन्ही परिसरों में ही ,पुष्पित पल्ल्वित नज़र आता है।
बागवानी का गुर समझने वालों का छोटा सा बगीचा ,गुलाबी ठण्ड में रंग बिरंगे फूलों से गुलज़ार हो गया है। अभी ठिठुरने वाली सर्दी का इंतज़ार है। कहने को चार महीने अच्छी सर्दी के मौसम को दिए जाते हैं ,अब तो दो महीने बाद ही गर्म कपड़ों और लिहाफ़ों का सिमटना शुरू हो जाता है।
पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को न समझना ,ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण रहा है।
समय पर अच्छी सर्दी का न पड़ना ,गर्मी के मौसम का बाकी सारे मौसम को निगलने के प्रयास में जुटना ,वर्षा का समय पर न होना ये सब आखिर है तो पर्यावरण असंतुलन का अनचाहा सा उपहार।
फ़िलहाल करिये गुलाबी जाड़ा को स्वीकार ,और कड़ाके की सर्दी का इंतज़ार स्वस्थ हवा के साथ।