कुछ तो है इस संसार में जो
सृष्टि को बनाये रखता है…..
जीवन चक्र चलता रहता है…..
पेड़ पौधे हों या हो अन्य जीव जंतु
सबमें जीवन दिखता रहता है…..
कुछ तो है इस ब्रम्महाण्ड में जो
राह दिखाता है…..
सभी जीवों के ऊपर अपनी
कृपादृष्टि बनाए रखता है……
कुछ तो है इस संसार में जो इंसान के अंदर
उम्मीदों का दिया जला कर रखता है…..
डूबते को तिनके के सहारे ही
संभाल कर रखता है…..
निराशा के भंवर में डूबते-उतराते हुए जीवन को
आशा की कश्ती में बिठा कर रखता है…..
यूं ही नहीं इंसान तेरे रहमो-करम के लिए
तेरे दरबार में भटकता रहता है…..
अपनी अपनी आस्था के अनुरूप
तेरे सामने सिर झुकाता रहता है…..
ऐसे समय में तू भी अपना रंग दिखाता है…..
मंद मंद मुस्कुराता है……
कर्म करने की बात कर
राही को राह दिखाता है…..
आस्था और विश्वास के साथ
तेरी चौखट पर आने के बाद भी
क्यूं करता है, रे मानव ! तू अभिमान……
उतार कर चोला अपनी
असीमित इच्छाओं और अभिमान का……
ऐसे ही नहीं तेरे दरबार में
सच्चा दरबारी भटकता है…..
कुछ तो होती है तेरी शक्ति…..
तभी तो दिखती है आस्था और विश्वास
के साथ तुझमें भक्ति……
मानव जीवन अदना सा….
विचारता रहता है ऊपर वाले के
तरह-तरह के रूप…..
ईश्वर के अनेक रूप दिखे, या दिखे ज्योति पुंज…..
छोड़ कर छलावे और झूठे आडंबरों को
जब इंसान तुझमें डूबता है…..
ऊपर बैठा हुआ बाजीगर तब अपनी
बाजीगरी दिखाता है….
अपने होने का अद्भुत एहसास
येन केन प्रकारेण कराता है……
(सभी चित्र इन्टरनेट से)
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Lovely poem and feeling of richness and positivity
Thanks☺