देखते ही देखते ऋतु बदल गयी
वर्षा ऋतु ने अपने कदमों को
पीछे खींच लिया
शरद ऋतु ने धीरे से कदमों को
आगे बढ़ा लिया
आकाश ने भी अपने रंग को बदल लिया….
मटमैले रंग की जगह ,नीले रंग का चोला पहन लिया…..
बदलता हुआ मौसम…..
बदलते हुए हालात…..
देश,समाज और परिवार मे
बताते हैं…..
स्वास्थ के प्रति आगाह
करने की बात ……
मच्छरों और कीट पतंगों ने
मधुर राग छेड़ा……
मौसम की अनुकूलता मे
डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, वायरल
सर्दी जुकाम जैसी बीमारियों ने
अपने पैरों को निश्चिंतता के साथ
पसार लिया
घरों के भीतर और समाज मे…..
इंसान अपने,सूजे हुये चेहरे,आँखों मे लालिमा…..
और अविरल आँसूओं की धारा के साथ….
घूमता फिरता दिखता है….
शायद!होगा कोई मानसिक संताप…..
इस तरह के विचारों मे जनमानस
उलझता दिखता है…..
न तो दिख रही थी प्याज को छीलने या काटने
जैसी कोई बात…..
न तो तीखी सी मिर्च का ही
जीभ पर कोई स्वाद…..

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बाकी की कसर घ्राण इन्द्रियों ने दिखायी…..
गंगा और जमुना सी अविरल धारा ने…..
सर्दी और जुकाम के होने की बात
ज़रा हौले से बतायी…..
बहुत दुखदायी होता है
यह सर्दी और जुकाम …..

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याद आती है सबसे पहले देशी दवाइयों की बात
तुलसी दल,लौंग,हल्दी,मुलेठी, काली मिर्च और अदरक के साथ……,
शहद की मिठास……
न नींद मे चैन न
जागते हुये आराम……
कहीं दूर चला जाता है
मुँह का स्वाद…
सीधा सादा खाना तो,बीते हुए
दिन की बात…..
जीभ भी दौड़ पड़ती है
चटपटे खाने के साथ…..
आर्युवेद और प्राकृतिक चिकित्सा ने भी
दृढ़ता के साथ मानी है यह बात….
शरद ऋतु मे होती है……
तमाम तरह की स्वास्थ्य से संबंधित
परेशानियों की शुरुआत ..…
ऐसा माना जाता है कि
शरीर अपने अंदर उपस्थित हानिकारक तत्वों को
बाहर फेंकने के लिए तत्पर रहता है…..
बस इसी कारण से….
कुछ समय के लिये ही सही ज्वर या सर्दी जुकाम जैसी
छोटी-छोटी परेशानियों से इंसान! जूझता दिखता है…..
यह देखकर आकाश भी मुस्कुराता है….
बदलते हुए मौसम मे हवा की शीतलता के माध्यम से
भागती दौड़ती आती हुयी….
शीत ऋतु की बात को….
हवा की सिहरन के माध्यम से ही बतलाता है…