Have we given a thought to the selflessness of the trees around us ?
प्रकृति का सबसे अनमोल उपहार मेरे विचार से वनस्पतियाँ होती हैं । जीवन से भरपूर होती हैं ,इनकी हरियाली मन को तो खुश करती ही करती है , इसके अलावा छाया के अलावा पेड़ पौधे आश्रय भी नि:स्वार्थ भाव से देते है
जब दिखायी पड़े अद्भुत प्रकृति का उल्लास ।
मन ने झूला हो प्रकृति के साथ डाल हाथों मे हाथ ।
सब कुछ अनमोल लगता है ।
सारा ब्रम्हाण्ड आँखों के सामने दिखता है।
ये सीमेंट से बनी हुयी इमारतें वनस्पतियों को
निगल जाती हैं ।
अपने निर्माण के कारण हरियाली को बहुमंजिली
इमारतों के पीछे छुपाती हैं ।
कहीं कहीं हरियाली के नाम पर सिर्फ
तुलसी जी ही दिखती ।
लक्ष्मी जी के बहाने ही आँगन या बालकनी
मे टिकती ।
गमले मे लगे हुये पौधे हरियाली से
भरपूर दिखते हैं ।
मयूर तो आस पास नही कहीं
सुदूर दिखते हैं ।
बड़ी दूर से मयूर की केवल आवाज ही
सुनायी पड़ती है ।
लेकिन कबूतर ,कौए और मैना
भरपूर दिखते हैं ।
अचानक से आँखें फिर गयी वृक्षों की तरफ
सूर्य की तपन मे ये वृक्ष आँखो को सुकून देते हैं ।
इंसान तो इंसान बहुत सारे जीव जन्तुओं को अपनी
छाया भरपूर देते है ।
ध्यान से देखा पीपल की पत्तियों को अपने हाथों
को जोर जोर से हिला रही थी ।
ऐसा लग रहा था कि शिव लिंग की अर्ध परिक्रमा
करती जा रही थी ।
ये तरुवर सृष्टि का अनमोल हिस्सा होते हैं ।
कितने जीव जन्तुओं को अपने अंदर संजोते हैं।
दिख गया अचानक से एक वयोवृद्ध सा वृक्ष ।
अपनी लंबी-लंबी दाढ़ी लटकाया हुआ था ।
अपनी विशालता के साथ-साथ सौम्यता भी
दिखा रहा था ।
अपनी लटकती हुयी दाढ़ी मे न जाने कितनी
गिलहरियों को सैर सपाटे करा रहा था ।
मैने सम्मान के साथ पूछा क्या आप अपना
नाम बतलायेंगे ?
माथे पर थोड़ी सी सलवटों के साथ मेरी तरफ देखा ।
मेरे बचकाने से सवाल के ऊपर जरा सा मुस्कुराया ।
अपनी पत्तियों को हिलाकर मेरी तरफ शीतल हवा
को पहुँचाया , बोला पहले मेरी छाँव मे आओ
ज़रा सा सुस्ताओ ।
इंसानो ने नही देवताओं ने मेरा नाम कल्पवृक्ष रखा है ।
वृक्ष जगत मे सबसे पुराना और अनुभवी कहलाता हूँ ।
बौद्ध धर्म का ज्ञान अपनी छाया के नीचे से ही फैलाया हूँ ।
अपनी उम्र को व्यर्थ ही नही गँवाया हूँ ।
सोच मे पड़ गया मेरा दिमाग ।
ये वनस्पतियों का अस्तित्व कितना पुराना है ।
लेकिन आजकल इनके ऊपर खतरा मंडराया है ।
जड़ों को फैलने की जगह भी नही मिलती ।
हर जगह सीमेंट की कठोरता ही दिखती ।
कभी पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाने से पहले हमने
इन बातों पर गौर फरमाया है।
बिना किसी स्वार्थ के पेड़ हमे कितना कुछ देते हैं।
बदले मे हमसे ये कभी कुछ न लेते हैं।
बनता तो हमारा फर्ज इनके प्रति भी कुछ है।
क्योंकि इनका कर्ज हमारे ऊपर अभी बहुत कुछ है।