नये साल की शुरुआत का ही तो समय था , हम अपने एक पारिवारिक मित्र के यहाँ आमंत्रित थे ,ठिठुरती हुयी सी सर्दी थी , जाकर आराम से लिविंग रूम मे बैठ गये ,बड़ी कुशलता से सजाया हुआ घर था।करीने से लगा हुआ सामान कुछ पेंटिंग्स दीवार की शोभा बढ़ा रही थी ।जरूरी नही कि ,आपका घर ज्यादा मँहगी चीजों के कारण ही आकर्षित लगे ,सादगी के साथ सजाया हुआ लिविंग रूम मुझे भा गया । मेरी आँखें दीवार पर टँगी एक पेंटिंग जो कि बहुत कुछ कवर इमेज जैसी थी उसपर जा कर ठिठक गयी ।
मेरे अंदर से कुछ शब्द निकले ,पंक्ति मे पिरोये गये और छंद बन कर पूरी की पूरी कविता ही बन गयी….
वो थी कुछ शांत , नीरव , निस्तब्ध सी
शायद खोज रही थी कुछ कलरव सी
प्रकृति ने समेटा हुआ था अपनी बाहों मे
मानो छुपा कर रखा हुआ था उसे अपने आँचल मे
पहाड़ों पर छुपती हुयी सी शाम थी
या जीवन मे आती हुयी धूप छाँव थी
रास्ते भी कुछ ऊँचे नीचे और टेढ़े मेढ़े से थे
जीवन के चढ़ते उतरते हुये से दिन थे
पक्षियों के कलरव का कोई अंत न था
कुछ शांत सा मन भी था
शायद अमावस्या की ही तो वो रात थी
न खत्म होने वाली बात थी
वो अनंत अज्ञात सी कुछ बातें थी
विधाता ने ही तो समझायी थी
अधसोया हुआ सा सूरज था
चंद्रमा ने अपनी किरणों को खोया था
प्रकृति की सुन्दरता का कोई अंत न था
विचारों से खेलने का भी कोई अंत न था
दूर तक फैली हुई हरियाली ही हरियाली थी
सब तरफ खुशियाली ही खुशियाली थी
धरा की सुन्दरता भी बेमिसाल थी
उसकी भी सोच कुछ कमाल थी
पनपे थे विचारों के कुछ नये अंकुर
नही होने वाले थे ये क्षणभंगुर
क्योंकि सामने कलम और दवात थी
कागजों को रंगने की आदत डाली थी
गिलहरियों के से नन्हे-नन्हे पाँव थे
बड़े बड़े से पेड़ों की छाँव मे थे
चढ़ना था पेड़ों की ऊँचाईयों पर
छूना था पत्तियों की तरुणाई को
अंदाजा न था उसे समुद्र की गहराइयों का
पता न था उसे लहरों की ऊँचाईयों का
विचारों का कुछ मंथन सा हो चला था
सवालों का भी कुछ हल सा हो चला था
समेटा था प्रकृति ने उसे अपने आगोश मे
सिखाया था रहना उसे हमेशा होश मे
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Nice
Thanx Manisha😊