ऐ मंदिरों की नगरी उज्जयिनी! तुम्हें शत् शत् प्रणाम….
क्या लूं, ऐ स्वर्गखण्ड उज्जयिनी! तुम्हारा नाम……
अवंति,कुशस्थली, अवंतिका, कनकश्रृंगा,विशाला
प्रतिकल्पा, पद्मावती या सिर्फ उज्जैन ही लेकर बुलाऊं तुम्हारा नाम….
तुम्हारा हर नाम तुम्हारी ऐतिहासिक महत्व की
बात कहता जाता है…..
कुछ भी लूं मैं तुम्हारा नाम, तुम्हारे नाम लेते ही
सर्वप्रथम सामने आते हैं, “साक्षात महाकाल”…..
ऐसी मान्यता है कि,भौगोलिक दृष्टिकोण से
पृथ्वी भी महाकाल को
अपने नाभिस्थल में लेकर बैठी हुई है…..
कराते रहते हैं जो तरह-तरह के रूप के साथ
अपना साज और श्रृंगार…….
शिवपुराण के अनुसार भस्म ही सृष्टि का सार है…..
महाकाल श्मसान के साधक हैं…..
इसीलिए भस्म आरती से ही कराते हैं
अपना प्रथम श्रृंगार……

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भव्य और दक्षिणामुखी होने के कारण
इनकी पुण्यदायी महत्ता है…..
प्रवेश करते ही इस पवित्र नगरी में अद्भुत
एहसास होता है……
ज्योर्तिलिंग महाकाल के अलावा आध्यात्मिकता
के भाव को जगाती हुई
शिप्रा नदी के कल कल का स्वर
मन को शांत करता है…..
“ग्रीनविच आफ इंडिया” भी तो तुम्हारा ही एक नाम है
प्राचीन काल से ही उज्जयिनी,ज्योतिष और खगोल
विज्ञान की पहचान है…..

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सम्राट विक्रमादित्य और विक्रम संवत
इसी पुरातन नगरी से जुड़ा है……
विक्रमादित्य के रत्नों में शामिल…..
महान खगोलविद वाराहमिहिर के प्रति सम्मान
दिखाता हुआ भी यह नगर दिख जाता है……

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रत्नों की बात आते ही महाकवि कालिदास
अपने महाकाव्य अभिज्ञान शाकुन्तलम और मेघदूत के माध्यम से
उज्जयिनी के गौरवशाली वैभव का वर्णन
करते नजर आते हैं…..
महाकवि कालिदास ने दुनिया के सारे रत्नों को
उज्जैन में बताया है…..

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