यूं ही आराधना के लिये हाथ जुड़ गये…..
मस्तक ऊपर वाले के दरबार मे
सम्मान के साथ झुक गये…..
शब्द विश्वास के साथ, प्रश्नोत्तर की राह पर मुड़ गये….
हो रहा था ऊपर वाले के दरबार मे, आमना सामना….
मन मे थी आस्था और भक्ति की भावना….
दिख रहा था मुखौटों के पीछे का
किरदार हर किसी का…..
हमने पूछा क्या हाल है शहर का…..
बोले मदमस्त है इंसान जमीं का…..
पुतले चलते हुये दिखते हैं…..
नासमझ और अनजान समझ,जीवन की राह मे छलते हैं…..
धर्म का बाजार सजा दिखता है….
पता है सबको….
कोई मिट्टी तले सोता है…..
कोई मिट्टी मे मिलता है…..
दिखी छोटी सी फेहरिस्त हाथों मे…..
हमने पूछा!सारे जहान का हिसाब-किताब
इन्हीं हाथों से संभालते हो…..
फिर भी इतनी छोटी सी, ही फेहरिस्त लिये
क्यों?इस जहान से उस जहान फिरते हो……
बातों मे हमारी अदब था…..
ऊपर वाले को शायद, गुफ्तगूं करने का अंदाज पसंद था…..
ज़रा सा मुस्कुरा कर बोले….
अपनी रहमतों का पिटारा खोले…..
बोले,अपने शब्दों को संभालते जाना…..
कलम की सकारात्मक आवाज और ताकत को पहचानना…..
कुछ अपनी कहना,कुछ हमारी सुनती जाना…..
ज्यादातर इंसान आता है तब दरबार मे….
जब रह जाता है कुछ बकाया, उसका इस
भौतिकवादी और मायावी संसार मे……
हमारे पास सवाल अनंत थे….
जवाब के लिये, बस छोटे-छोटे से ही कुछ पल थे…..
फेहरिस्त के छोटे से आकार का जवाब मिल गया….
बोले,हम तो ऊपरी चमक दमक देख कर हैरान थे….
पास मे जाकर देखा तो,असली चेहरे
मुखौटों के पीछे,छिपे हुये दिख गये…..
जमीं पर इंसान, भौतिकवादी और अमीर दिख गया…..
लेकिन जमीर के मामले मे
खुद को ही छलता हुआ दिख गया……
बस, फेहरिस्त छोटी इसीलिये रह गयी…..
करना था केवल,जमीर वालों के कर्मों का हिसाब…..
सारा हिसाब किताब बस कागज के
चंद टुकड़ों मे ही सिमट गया……
(सभी चित्र internet से )