दैनिक जीवन के काम धाम भी
विचारों के झरने बनाते जाते हैं
दिमाग से निकलकर यही झरने
कागजों पर बहते जाते हैं।
बहाव के दौरान मिलता है
विचारों को कलम का साथ।
वही विचार कविता या कहानी मे
बदलते चले जाते हैं।
साफ़ सफ़ाई करने के दौरान
अचानक से आ गया दिमाग मे ख्याल।
साबुन का बना हुआ बुलबुला।
दिखता है कितना चुलबुला।
हिलता डुलता सा अनजानी सी
दिशा मे बढ़ चला।
हमेशा ही साबुन का घोल बनाते समय
ढेर सारे बुलबुले बाल्टी मे भर जाते हैं।
घूमने फिरने वाली खुली जगहों मे
बुलबुले बनाने वाले खिलौने और उड़ते हुए बुलबुले
हर जगह नज़र आयेंगे।
देखते ही देखते चारों तरफ
आकाश मे उड़ान भरते नजर आयेंगे।
ऐसा लगता है घूम रहे हो चारो तरफ
बिना काम धाम।
छोटे-छोटे बुलबुले दिन की रोशनी मे
तमाम रंगों से अपने आप को सजाते हैं।
हवा के बहाव के साथ चारों दिशाओं
मे बिखरते चले जाते हैं।
कुछ समय के जीवन मे ही सही
बच्चों की आँखों के साथ-साथ
बड़ों की आँखों को भी सुकून दे जाते हैं।
हमने सोचा चलो हम भी
बुलबुले बनाते है।
साबुन के घोल के साथ
बचपन को जीते जाते है।
हल्की सी फूँक मारते ही
बुलबुले,घूमने फिरने निकल पड़े।
मुस्कुराते हुए आकाश मे उड़ चले।
इन बुलबुलों जैसा मनुष्य के भावों
का भी जीवन छोटा सा होता है।
थोड़े समय के लिए ही उठने वाले भाव
जीवन की दिशा बनाते हैं।
दुख क्रोध और निराशा जैसे नकारात्मक भाव वाले बुलबुले
ज़रा सी परेशानी दे जाते हैं।