सच कही गयी है यह बात कि, यात्रा इंसान को उस स्थान से जोड़ती है, जहाँ कि वह यात्रा करता है
यात्रा के माध्यम से इंसान, अनेक छोटी बड़ी बातों से जुड़ता जाता है ।
रोजमर्रा के जीवन मे, आम सी लगने वाली ‘चाय’ भी, यात्रा के दौरान खास लगती है ।
सामान्यतौर पर रोज के जीवन मे, आदत सी बन चुकी ‘चाय’ का स्वाद भी, हर जगह का भिन्न भिन्न होता है ।
कहीं ‘मसाला चाय’,तो कहीं ‘काली चाय’ ।
कहीं दूध के साथ कड़क,तो कहीं दूध का स्वाद ज्यादा,चाय की पत्ती कम डालने का इरादा ।
कहीं तो ‘चाय’ की तासीर के साथ-साथ, रंगत भी बदल जाती है ।
ग्रीन टी और, आइस टी के रूप मे भी ‘चाय’, बेहतर और उपयोगी समझ मे आती है ।
यात्रा का साधन बस हो,ट्रेन हो या खुद का वाहन, ‘चाय’ पीने की तलब, ‘चाय’ के कुल्हड़ और केतली के पास पहुंचा देती है ।
ऊंघते अनमने से यात्रियों मे ऊर्जा का संचार करा देती है ।
सच मायने मे अगर सोचिये तो
‘चाय’ शब्द बहुत ‘सामाजिक’ सा लगता है ।
‘अभिवादन’ के साथ ‘आतिथ्य संस्कार’ से जुड़ा होता है ।
ज्यादा ‘चाय’ पीने की आदत भी बुरी होती है ।
हद से ज्यादा अपनाओ तो,लत सी लगी होती है ।
सामान्यतौर पर ‘चाय’ का गरमागरम मिजाज ही
समझ मे आता है ।
सर्द मौसम मे कुहरे के साथ धुआँ ।
बरसात के मौसम मे
मेघों के साथ धुआँ ।
‘चाय’के प्याले के ऊपर
तैरता नज़र आता है ।
हमारे देश मे बदले हुए मौसम की बात
‘चाय’के बदले हुए स्वाद के साथ
समझ मे आती है ।
‘चाय’ की सोंधी सी महक ।
लौंग और काली मिर्च के साथ कड़क ।
साथ मे अदरक और इलायची का साथ ।
नज़र आती है,सर्द मौसम मे ‘चाय’ सौगात ।
शायरों और गीतकारों ने भी ‘चाय’ को अपने
लफ्ज़ों मे उतारा है ।
कुल्हड़ों और प्यालों मे दिखता है
साँवले रंग का पेय ।
समझना नही अपनी नज़रों
या जुबाँ से इसे हेय ।
‘चाय’ की प्याली नुक्कड़ों से लेकर
चमकते दमकते कैफेटेरिया तक
अपना प्रभाव छोड़ती,नज़र आती है ।
जीवन के सफर मे,’चाय’ भी
यादों और बातों के साथ
साथ निभाती नज़र आती है ।