भोर की अरुणिमा में ,कुछ विचार कौंधे हैं…. कुछ तो उपजेगा…. बुनेगी कविता या बुनेगी कहानी… कुछ शब्द डोले हैं…. कुछ तो पनपेगा… विचारों के समंदर में शब्दों ने लगाया गोता… बाहर आकर बोले है… शब्दों के तानेबाने से… कुछ तो बनेगा… रचनात्मकता की उड़ान… कुछ पल के लिए थमती दिखी… बेहतर अंदाज ! कभी तो दिखेगा… आगे बढ़ता चल राही… असफलता या सफलता ,कुछ तो मिलेगा… यदि हौसला हो गिरा हुआ… मार्ग हो अवरुद्ध सा… मन में हो घोर निराशा… आशा ने हो मुँह को फेरा… ज़रा शांत मन से बैठना… खुद से ही सवाल पूछना… है क्या यह निराशा का दौर ? संभावनाओं की तलाश में… असंभव शब्द ,लगाता हो होड़… निराशा की कालिमा के पीछे… आशा की धीमी सी लौ जलती दिखेगी… तब सार्थक कर्म की राह पर मुड़ना… सकारात्मक विचारों की राह चुनना… खुद को कर्मठता की तपन में सेंकना… जीवन का सफर है राही… विचारों का तिलिस्म है राही… देखता चल राही… तूफानों के दौर से गुजरकर… निराशा के अँधेरे से निकलकर… कुंदन सा दमकेगा..