अपनी रूचि का साहित्य पढ़ने का शौक हमसे भी कभी-कभी किताबों का अध्ययन करा देता है।
इसी क्रम में तमाम काम – धाम के बीच में ‘श्री अमृतलाल नागर” जी की उपन्यास करवट को हमने पिछले कुछ दिनों में पढ़ा।
किताबों को पढ़ना उनके साथ सोच -विचार का एक लम्बा क्रम होता है न ?
सोच रही थी की समाज की करवट ! कितने बड़े विषय को उपन्यास के पन्नों में समेटा है। इंसान विचारों के साथ छोटे -छोटे समय के अंतराल में करवटें बदलता है। हर करवट के साथ सुख – दुख , सफलता – विफलता ,व्यग्रता जैसे भाव जुड़े होते हैं।
इस उपन्यास में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से लेकर ,बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के समय की करवट की बारे में बताया है।
देश के स्वतंत्र होने से पहले लखनऊ ,कलकत्ता ,दिल्ली और लाहौर कितने परिवर्तनों की दौर से गुजर रहे थे।
सामाजिक और पारिवारिक ढांचा मजबूत होने के बाद भी युवा और किशोर वर्ग ,अंग्रेजियत के ताने – बाने से समाज को बुनने के लिए आकुल और व्याकुल थे।स्वस्थ परम्पराओं और अस्वस्थ कुरीतियों के बीच में ,हिन्दू और मुस्लिम दोनों समाज की चिंता बरक़रार थी।
आज भी देश की राजधानी या प्रदेश की राजधानी में रहने वाले लोगों के जीवन जीने का तरीका , छोटे शहरों या कस्बों में रहने वाले लोगों को प्रभावित करता है। सौ दो सौ साल पहले भी बड़े शहरों में रहने वाले लोग छोटे शहरों में रहने वाले लोगों को प्रभावित करते थे जिसके कारण शनैः शनैः समाज ने करवट बदला।
हिन्दू समाज का युवा एक तरफ ब्रह्म समाज की लहर के साथ था ,दूसरी तरफ आर्य समाजी विचारधारा अपनी तरफ खींच रही थी। पढ़े लिखे समझदार लोगों की यह सोच थी की , यदि आगे देश का विकास चाहिए तो अंग्रेजी ज्ञान आवश्यक है। लेकिन वो इस बात को भी समझते थे की भाषा का ज्ञान, अंग्रेजी विचारधारा का भी दबे पाँव समाज में प्रवेश कराएगा।
रोज के जीवन के कुछ बड़े ही रुचिकर प्रसंगों को इस उपन्यास में लिखा है।
“ठन्डे ठन्डे पानी से नहाना चाहिये गाना आये या न आये गाना चाहिए” की जगह, नहाते समय लोगों के मुख से निकलता था ‘गंगा बड़ी गुदावरी कि तीरथ बड़े परयाग और सबसे बड़ी अजुध्याजी कि मल मल करैं नहान “
जब पानी कि समस्या उत्तर भारत में बढ़ी तो ,अंग्रेजों ने बोरिंग का जल नलों के जरिये घर – घर पहुंचाने का काम किया। आज बाथरूम कि साजसज्जा में पैसा खर्च करके ,तमाम तरह के शावर और नल लगवाने वाले शहरी तबके को शायद यह बात नहीं पता कि, नल भी छुआ छूत कि कुरीति में शामिल था। उस समय नल का पानी पीना , खाना पकाना या पूजा पाठ में इस्तेमाल करना अछूत कर्म की श्रेणी में आता था।
गाँव और कस्बों के कई घरों में आज भी पूजा पाठ के लिए , नल का पानी उपयोग में नहीं लिया जाता।
उस समय के अनेक प्रसंग हैं
विलायत से पढ़कर आने वाले युवाओं के परिवारों को , बिरादरी से बाहर कर दिया जाता था। उनकी परेशानियों का वर्णन हैं।
लड़कियों और महिलाओं के सामाजिक स्तर सुधारने का प्रयास करने वाला परिवार , व्यंग वाणों का शिकार होने के साथ – साथ समाज से बाहर भी होता था।
पत्रों का सम्पादन बढ़ गया था।
आम जनता में अपने अधिकारों और विकास की चाह बढ़ गयी थी। मुखरता बढ़ने वाला प्रसंग ,आज की सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसा ही समझ में आ रहा था। आज के समय की सौ ,दो सौ साल पहले के समय से तुलना करिये तो समझ में आता है की समाज कैसे करवट बदलता है।
समाज की करवट उस समय के लोकगीतों पर भी अपना प्रभाव छोड़ती है। उपन्यास के अनुसार ,अंग्रेजी पढ़ने का चलन भारतीय समाज में भी बढ़ने लगा। शादी विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों के बोल कुछ इस प्रकार के थे"सैयां हमारे मिडिल पास अंग्रेजी बिगुल बजाते हैं "
पर्दा प्रथा ,बालविवाह ,सती प्रथा ,पुरुषों का बहुविवाह कुछ ऐसी सामाजिक कुरीतियां थीं जो, परिवारों में समाज के दबाव के कारण स्वीकार ली जाती थीं लेकिन, कलह और अनेक बुराइयों का कारण भी बनती थीं। महिलाओं की स्थिति सबसे ज्यादा खराब थी।
हमारे समाज की कुरीतियों को दूर करने में , कितनी मजबूत इक्षाशक्ति और नेतृत्व की जरूरत पड़ी रही होगी।
प्लेग का समय करोना काल जैसी महामारी के कारण उपजी हुई समस्याओं जैसा समझ आ रहा था। लेकिन उस समय की तुलना में आज
चिकित्सा सुविधा बेहतर है।
परिवर्तन न रुकने वाला क्रम है। समाज आज भी शिक्षा और ज्ञान के साथ करवट बदल रहा है।