एक शहर आशाओं और उम्मीदों को समेटे ,चारों दिशाओं मे विकासशील सा दिखा…..
जादूगरों का शहर कह लो ….अंधेरी रात मे रोशनी से चमचमाता शहर कह लो……सभ्यताओं का शहर कह लो……विकास की दौड़ मे भागता हुआ शहर कह लो….सांस्कृतिक विरासतों और ऐतिहासिक इमारतों को, खुद मे सहेज कर रखा हुआ शहर कह लो…..
अगर हौसला खुद का बुलंद है तो, मेट्रो ट्रेन की गति के साथ रफ्तार पकड़ लो…..
अपनी कल्पनाओं को पंख लगा कर उड़ने की चाहत अगर दिल मे है तो…..टी थ्री हवाई अड्डे की तरफ नज़रों को फेर लो….
बात कहीं दूर की नही है, ये तो है हमारे दिल्ली शहर की बात……
शब्दजाल मे उलझ गया था…..
बड़ा अजीब सा शहर है,अपने को पूरी तरह से शब्दों मे भी नही समेटता…..
हमेशा लेखकों की कलम से इसका, कोई न कोई कोना अनछुआ सा छूटता है……
मुझे तो हमेशा से ही यह,बात सही लगती है…..एक बार मे और चंद शब्दों मे, इस शहर को समेटा नही जा सकता….
अपने ही देश के विभिन्न हिस्सों से, पलायन करके दिल्ली मे बसे लोगों के अलावा…..विदेशी नागरिकों की छोटी सी भीड़…..इस शहर के हर कोने मे नज़र आती है…
खानपान और पहनावे मे देशी विविधता के साथ-साथ, विदेशी आधुनिकता और स्वाद भी इस शहर मे नज़र आता है…..
दिल्ली का दिल कनाॅट प्लेस –
दिल्ली के दिल की बात को कनाॅट प्लेस,अपनी चका चौंध और चहल पहल से सिद्ध करता जाता है…
कनाॅट प्लेस, दिल्ली का सबसे बड़ा व्यावसायिक और व्यापारिक केंद्र है…..
इसका नाम ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य ‘ड्यूक आफ कनाट’ के नाम पर रखा गया था….
पहले यह रिज एरिया हुआ करता था….यहां कीकर के पेड़ हुआ करते थे और,जंगली जीव जन्तुओं की बहुतायत थी….
जंगली इलाका होने के कारण, यह स्थान सूर्यास्त के बाद सुरक्षित नही माना जाता था….
दिल्ली के अन्य पाश इलाकों से लोग यहां पर, शिकार का शौक पूरा करने के लिए आया करते थे ……
कनाॅट प्लेस को विकसित करने के लिए कई गांवों को खाली कराया गया…..
यहां पर रहने वाले लोगों को ,करोल बाग की तरफ के पथरीले इलाके मे बसाया गया…..
वर्तमान कनाॅट प्लेस A block से लेकर L block तक के खंडों मे बसा हुआ है…..
इस बाजार का डिजाइन डब्ल्यू.एच.निकोलस और टार रसेल ने बनाया था…..
ब्रिटिशों का यह मानना था कि, घोड़े के पांव के आकार वाली यह बाजार ,खरीददारों और बेचने वाले दोनो के लिये भाग्यशाली साबित होगी……
आजादी से पहले कनाॅट प्लेस ब्रिटिश राज का मुख्यालय हुआ करता था…..
रीगल सिनेमा सी.पी का पहला थियेटर था जिसे 1932मे खोला गया था…..
चहल-पहल के साथ कनाॅट प्लेस –
कनाॅट प्लेस मे घूमना दिल्ली वालों की पहली पसंद है…..
दिन के उजाले मे लोगों का समूह बातें करता हुआ, कुछ खाते पीते ,घूमता हुआ सा नज़र आता है…..
दिल्ली की नाइट लाइफ का मजा लेने वाले लोगों के लिए, कनाॅट प्लेस भोर तक जागता दिखता है….
अनेक रेस्टोर-बार और पब यहां मौजूद हैं…..
शापिंग के लिए, दिल्ली के लोगों की पहली पसंद कनाट प्लेस है…..
बड़े बड़े अंतराष्ट्रीय ब्रैंड के सामानों की दुकानों के अलावा, किताबों के शौकीनों के लिए बुक स्टोर्स….
मोलभाव के साथ खरीददारी करने वालों के लिए, जनपथ पर सजी हुई दुकानें आकर्षित करती हैं…..जो हर उम्र के लोगों की पसंद के साथ-साथ, कालेज मे पढ़ने वाले युवाओं की पहली पसंद होती है….
इंडियन काफी हाउस –
कनाॅट प्लेस मे मोहन सिंह प्लेस की दूसरी मंजिल पर स्थित इंडियन काॅफी हाउस ,विगत कई वर्षों से बुद्धि जीवियों के अलावा ,युवाओं की पसंदीदा जगह रहा है…
यहाँ पर खाने पीने की चीजें स्वादिष्ट और अन्य रेस्टोरेंट की तुलना मे, जेब पर कम बोझ डालने वाली होती है…
आस्था के साथ कनाॅट प्लेस –
पुराना हनुमान जी का सिद्ध मंदिर चहल पहल मे घूमते हुए लोगों के कदमो को अपनी तरफ मोड़ देता है…
बंगला साहब गुरूद्वारा से आती हुई शबद कीर्तन की मद्धिम आवाज,लोगों का रेला …
भीड़ के बीच मे भी इंसान आस्था के साथ दिख जाता है…
सिर ढका हुआ ,नजरें ऊपर वाले के सम्मान मे झुकी हुई, लंगर खिलाते लोग…
कुछ समय के लिये दर्प कहीं दूर ….
मेट्रो स्टेशन और सेंट्रल पार्क –
मेट्रो के चलने के बाद से कनाॅट प्लेस की सुन्दरता देखते ही बनती है…..
राजीव चौक मेट्रो स्टेशन की छत पर स्थित सेंट्रल पार्क मे विशालकाय तिरंगा लहराता हुआ नज़र आता है…
सर्द मौसम की शुरूआत के साथ ही, कनाॅट प्लेस के सेन्ट्रल पार्क मे अनेक सांस्कृतिक गतिविधियां समय समय पर होती हुई दिखती है….
सर्दियों के समय ही आप भारतीय सांस्कृतिक विरासत जैसे संपूर्ण रामायण को, नृत्य रूप मे जाने माने कलाकारों की प्रस्तुति के माध्यम से देख सकते हैं……
इस तरह के कार्यक्रमों को देखने के लिए, सिर्फ देशी दर्शकों की ही नही विदेशी पर्यटकों की भीड़ भी जुटती है…..
राजीव चौक मेट्रो स्टेशन, भीड़ के सैलाब के साथ स्थिर खड़ा नज़र आता है….
इस स्टेशन पर किसी कोने मे, चाय या काॅफी की चुस्कियों के साथ आप भीड़ के माध्यम से भारत दर्शन भी कर सकते हैं……
किसी मेट्रो के रुकते ही, भीड़ का सैलाब सा बाहर निकल कर बिखर जाता है….कुछ ही पलों मे एक बार फिर से भीड़ इकट्ठी होती दिखती है,और मेट्रो के आते ही सारी भीड़ मेट्रो के अंदर समा जायी है …..यह क्रम कुछ पलों के अंतराल मे चलता रहता है….
इसी शोर गुल और भीड़ के बीच मे या, किसी कोने मे आराम से बैठा,या भीड़ भाड़ का हिस्सा बना कोई लेखक ….अपनी कविता या कहानी की भूमिका बनाता हुआ, शांत,विचारमग्न या आंखों मे कौतूहल के भाव के साथ ,सफर करता हुआ नज़र आता है……