चलते हुए “रास्तों”को देखते हुए
एक “अनसुलझा” सा विचार
दिमाग मे समा गया…..
देखते ही देखते मुझे “आकुल”और
“व्याकुल” करते हुए
बिना समय “गंवाए” मेरे दिमाग पर छा गया।
रास्तों पर,दुकानों में,बनती हुई इमारतों मे
चारो तरफ काम करते हुए लोगों को
ज़रा सा “करीब” से देखा।
आँखों ने यह देखकर कई सारे “सवालों” को
मेरे दिमाग मे प्यार से “फेंका”…..
हर व्यक्ति के हाथों मे कोई न कोई
“औजार”सज रहे थे……
“औजारों” के साथ “तल्लीनता” से काम मे
“तल्लीन” लोग बड़े “जँच” रहे थे….
“औजारों”के बिना “निर्माण” के साथ साथ
“विध्वंस” भी संभव है क्या ?
फावड़ा, कुदाली,खुरपी और हल के बिना
धरती भी “सृजन” नही करती….
मिट्टी की “उलट पुलट” इन्हीं औजारों के सहारे
ही तो होती…
आधुनिकता की चमक के साथ-साथ
बदलती हुई जरूरतों से, औजारों की दुनिया भी बेखबर नहीं….
“आदिम युग”से लेकर आज तक के औजारों
की दुनिया विकास की राह पर दिख रही..
पत्थरों को नुकीले कर के या लकड़ियों को छीलकर
पाषाण युग मे औजार बनाये जाते थे…..
इन्हीं औजारों से ही तो पेट की भूख, सुरक्षा और
घर के साजो-सामान भी सजाये जाते थे….
“आधुनिक रसोई” भी बिना औजारों के “सजती” कहाँ?
दाल रोटी से लेकर खाने पीने की सभी चीजें
चौकी, बेलन, कलछी, चम्मच के बिना बनती कहाँ?
एक “लेखक” का औजार उसकी “वाणी” और
“कलम”ही होती है…..
इन्ही के सहारे तो विचारों को शब्दों मे “पिरोकर”
कविता कहानी या गद्य की नई नई दुनिया “सजती” है….
सामने रखे हुए स्क्रू ड्राइवर ,हैमर ,टेस्टर जैसे न जाने
कितने औजार आँखों के सामने दिख गये…..
जरूरत पड़ते ही जल्दी से सभी अपने कामों को
करने मे जुट गए…
जितना ज्यादा मै औजारों के बारे मे सोचती जा रही थी….
उतनी ही “वृहद”दुनिया मुझे औजारों की नजर आ रही थी….
आखिरकार मेरे सोच विचार का यह परिणाम निकला
औजारों की दुनिया से कहीं भी, और कुछ भी नही है “अछूता”…
इसीलिये तो “आदिम युग”से लेकर आज तक “मानव जाति”का
और औजारों का साथ नहीं “छूटा”….
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Vah kya khoob,.
Bahot hi ascha
प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया 😊
Sahi kary ke liye sada
प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया 😊
🌠🌠🌠🌠🌠
😊