दिव्य कुण्डलों का चोरी होना और उत्तंग मुनि की विवशता
राजा सौदास से अपने हित की बात सुनकर और रानी मदयन्ती से दिव्य कुण्डल मिल जाने के बाद ,उत्तंग मुनि तेजी से अपने आश्रम की तरफ बढ़े जा रहे थे I
राह में चलते समय उनके दिमाग में हमेशा कुण्डल की सुरक्षा का विचार चल रहा था I
मुनि ने कुण्डल को काले मृगछाला में बांधा हुआ था I राह में चलते चलते उन्हें बहुत जोर से भूख लगी I सामने ही बेल के भार से झुका हुआ एक वृक्ष दिखाई पड़ा I
महर्षि उस वृक्ष पर चढ़ गये और काले मृगछाला में बंधे हुए कुण्डल को, वृक्ष की एक शाखा से बांध दिया I पेड़ पर चढ़कर बेल के फल को नीचे गिराने लगे I उस समय उनका ध्यान कुछ समय के लिए, शाखा पर बंधी हुई मृगछाला की तरफ से हट गया I
उनके तोड़े हुए अधिकांश फल, शाखा पर बंधी हुई मृगछाला पर गिरने के बाद ही भूमि पर गिरे I बार बार फलों के मृगछाला पर गिरने के कारण गठान खुल गयी और वो शाखा से अलग हो जमीन पर जा गिरी I
उस वृक्ष के नीचे ऐरावत कुल में जन्मा एक नाग पहले से ही था I जैसे ही उसकी नजर कुण्डल पर पड़ी उसने जल्दी से दोनों कुण्डलों को मुँह में दबाया और पेड़ की जड़ में बने बिल में घुसकर भाग गया I
सांप के द्वारा कुण्डल को चोरी किये जाने की घटना को, मुनि पेड़ के ऊपर से देख रहे थे I सब कुछ इतना अचानक से हुआ कि मुनि के पेड़ से नीचे उतरने से पहले ही, नाग गायब हो गया I
मुनि बेचैन और क्रोधित हो गये I नीचे आकर एक लकड़ी कि सहायता से बिल को खोदने लगे I लगातार पैंतीस दिन तक बिल को खोदने के कार्य में जुटे रहे I
उनके असहनीय वेग को, पृथ्वी भी न सह पायी और घायल हो कर डगमगाने लगी I महर्षि नागलोक में जाने का निश्चय कर चुके थे और धरती को खोदते जा रहे थे I
यह देखकर देवराज इन्द्र अपने घोड़ों में जुते हुए रथ पर बैठकर, हाथ में वज्र लिए उस स्थान पर आये I तपस्वी मुनि को परेशान देखकर चिंतित हो गये और, ब्राह्मण का रूप धरकर उत्तंग मुनि के पास गये I
ब्राह्मण के रूप में मुनि के पास जाकर बोले मुनिवर ! यह तुम्हारे वश का काम नहीं हैI नागलोक यहाँ से हजारों योजन दूर है I
मेरे विचार से तुम्हारे लिए यह कार्य असाध्य है I यह सुनकर मुनि ने गुरुमाता को दी जाने वाली गुरुदक्षिणा के वचन कि बात कह सुनाई, और कहा यदि नागलोक में जाकर चुराए हुए कुण्डल को वापस लाना मेरे लिए असाध्य हैI तब मै यहीं आपके सामने अपने प्राणों का त्याग कर दूंगा I
वज्रधारी इन्द्र जब किसी भी प्रकार से मुनि को उनके निश्चय से नहीं हटा पाए तो , अपने वज्र को खोदने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले दंड के आगे के भाग में लगा दिए I
अब वज्र के तीव्र प्रहार से नागलोक में जाने का रास्ता कुछ ही समय में बन गया I उत्तंग मुनि भूख प्यास से व्याकुल थे, लेकिन उन्होंने ब्राह्मण देवता के प्रति आभार प्रकट किया और, नागलोक में प्रवेश करने के लिए बढ़ चले I