रानी मदयन्ती द्वारा कुण्डल की महिमा बतलाना
राजा सौदास के द्वारा दिव्य कुण्डल दिए जाने की आज्ञा मिलते ही, उत्तंग मुनि निर्जन वन की तरफ चल पड़े I
बहुत देर तक घने वन में भटकने के बाद उन्हें, एक झरने के पास शिला पर बैठी हुई रानी मदयन्ती दिखाई पड़ी I
रानी के कानों में दिव्य मणि, अपनी झिलमिल तीव्र चमक के कारण, अनमोल समझ में आ रही थी I
तुरंत ही मुनि रानी मदयन्ती के पास गए और अपने आने का प्रयोजन उन्हें बतलाया I विनम्रतापूर्वक राजा का सन्देश रानी को सुनाया I
रानी ने मुनि से कहा महर्षि ! महाराज ने जो कुण्डल देने की बात कही है,वह ठीक है I मुझे आप तपस्वी ब्राह्मण दिख रहे हैं,आप असत्य नहीं बोल सकते I लेकिन फिर भी मेरे विश्वास के लिए आपको उनका कोई चिन्ह लेकर आना चाहिये I
मेरे ये दोनों मणिमय कुण्डल दिव्य हैं I देवता ,यक्ष और महर्षि लोग अनेक उपायों से चुरा ले जाने के प्रयासों में लगे रहते हैं I
यदि इसे पृथ्वी पर रख दिया जाये तो नाग हड़प लेंगे,अपवित्र अवस्था में धारण करने पर यक्ष उड़ा ले जायेंगे I
इन्हें पहनकर यदि कोई नींद लेने लगे तो, इसे देवता चुरा ले जायेंगे I
देवता ,राक्षस और नागों से सुरक्षित रहने वाला व्यक्ति ही इसे धारण कर सकता है I
इन कुण्डलों से रात दिन स्वर्ण टपकता रहता है I नक्षत्रों के समान इसकी चमक रहती है I इनको पहनने से विष ,अग्नि तथा अन्य भयदायक जंतुओं से कोई भय नहीं होता I इनको अगर कोई छोटे कद वाला व्यक्ति पहन ले तो यह छोटे हो जाते हैं I बड़े कद वाले व्यक्ति के पहनने से ये बड़े हो जाते हैं I
अतः मेरे ये कुण्डल प्रशंसा के पात्र हैं I अगर राजा सौदास ने इन्हें आपको देने के लिए कहा है तो, कृपया कर के उनकी कोई पहचान लेकर आइये I
रानी की बात सुनकर मुनि वापस राजा सौदास के पास गए और, रानी के द्वारा कही बात उन्हें बतायी I
तब इक्ष्वाकु वंश में श्रेष्ठ लेकिन शापित राजा ने सन्देश देते हुए कहा – प्रिये ! मै जिस दुर्गति में इस समय पड़ा हुआ हूँ वो, मेरे लिए कल्याण करने वाली नहीं है I शापित होने के कारण मेरे लिए कोई दूसरी गति नहीं है I अपने दोनों कुण्डल ब्राह्मण देवता को दे दो I
यह सुनकर मुनि रानी के पास गए और, ज्यों का त्यों सन्देश रानी को कह सुनाया I सन्देश सुनते ही रानी ने तुरंत अपने कानों से कुण्डल उतार कर मुनि को सौंप दिया I
मुनि वो कुण्डल लेकर राजा के पास सन्देश में छिपे हुए गूढ़ अर्थ को जानने के लिए गए I
सौदास ने कहा मै हमेशा से ही विप्रवरों का सम्मान किया करता था ,लेकिन अनजाने में हुई गलती के कारण शापित हुआ I रानी मदयन्ती के साथ अपनी दुर्गति के समय को इस निर्जन वन में काट रहा हूँ I रानी ने मेरे सन्देश में छिपे हुए गूढ़ अर्थ को समझ कर, आपको कुण्डल सौंप दिया है I अब आप अपनी प्रतिज्ञा को पूरी कीजिये I मुनि ने कहा राजन ! मै अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने के बाद आपका आहार बनने के लिए आपके आधीन हो जाऊंगा I
जाने से पहले मै आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ,अगर आपकी आज्ञा हो तो I
राजा के द्वारा अनुमति मिलने पर मुनि ने कहा – राजन ! विद्वानों ने उसी को ब्राह्मण कहा है जो वाणी का संयम रखता हो ,सत्यवादी हो,जो मित्रों के साथ विषमता का व्यहवार करता है वो, चोर माना जाता है I
आज आपके साथ मेरी मित्रता हो गयी है,इसलिए आप मुझे उचित सलाह दीजिये I
आप जैसे पुरुष के पास जिसका मै आहार बनने वाला हूँ ,मुझे वापस आना चाहिए की नहीं ?
सौदास ने कहा महर्षि ! मित्रता के धर्म को सर्वोपरि मानकर यदि आप मुझसे उचित सलाह मांग रहें हैं तो, आपको किसी भी तरह मेरे पास नहीं आना चाहिए I इसी में आपका कल्याण है I
इसप्रकार बुद्धिमान राजा सौदास के मुख से, उचित और हित की बात सुनकर उत्तंग मुनि आश्रम की राह पर बढ़ चले