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उत्तंग ऋषि की गुरुभक्ति (भाग1)

by 2974shikhat November 11, 2020
by 2974shikhat November 11, 2020

महाभारत की कथा के अनुसार

उत्तंग मुनि महर्षि गौतम के प्रिय शिष्यों में से एक थे I वे बड़े तेजस्वी और तपस्वी थे I उनकी यही विशेषता उनके तपोबल में वृद्धि करती थी I
ऋषि गौतम के पास हजारों शिष्य आये और गुरुकुल में रहने का अपना समय पूरा करके, अपने अपने घरों को वापस चले गये I
किन्तु उत्तंग पर अत्यंत प्रेम होने के कारण ,महर्षि गौतम ने उन्हें घर जाने की आज्ञा नहीं दी I
धीरे धीरे उत्तंग मुनि को बुढ़ापे ने आ घेरा I गुरुभक्ति में मग्न होने के कारण मुनि को बुढ़ापा आने का पता भी न चला I
एक दिन की बात है उत्तंग जंगल में लकड़ी लाने के लिए गये I जंगल से वापस आते समय उनके सर पर लकड़ी का एक बड़ा सा गट्ठर था जो अत्यंत भारी था I
गट्ठर को उठाने के कारण वो बहुत थक गये ,आश्रम में पहुंचकर गट्ठर को जमीन पर गिराने लगे I उसी समय लकड़ी में फंस कर चाँदी के समान एक सफ़ेद बाल लकड़ी में उलझ गया I यह बाल मुनि की जटा के बालों में से एक था I
गट्ठर की बोझ की थकान,बहुत जोर से भूख का सताना ,ठीक उसी समय सफ़ेद बाल को देखकर मुनि फूट फूट कर रोने लगे I
तब गौतम मुनि ने पास आकर पूछा पुत्र ! आज तुम्हारा मन शोक से व्याकुल क्यों हो रहा है ? मै इसका कारण जानना चाहता हूँ I
उत्तंग ने कहा,गुरुदेव आपका ही प्रिय करने की इच्छा से मै सदा, आपकी सेवा में श्रद्धा और भक्ति रखता था I
इसीकारण से मुझे पता ही नहीं चला, कब आयु हाथ से सरक गयी I मुझे यहाँ रहते हुए सौ से भी अधिक वर्ष बीत गये आपने मुझे घर लौटने की आज्ञा नहीं दी I
गौतम ऋषि ने कहा, भृगुनन्दन तुम्हारी सेवा देखकर मुझे तुमसे स्नेह हो गया था I इसीलिए इतना समय बीत गया मुझे इसका पता भी नहीं चला I
अब देर मत करो, मै तुम्हे घर जाने की आज्ञा देता हूँ I उत्तंग ने कहा ,मुनिवर मै आपको गुरुदक्षिणा में क्या दूँ ?
ऋषि ने कहा ,पुत्र मै तुम्हारी सेवा और भक्ति से प्रसन्न हूँ ,यही तुम्हारी तरफ से दे जाने वाली दक्षिणा है I
इसके बाद उत्तंग मुनि ने तपोबल से युवावस्था को प्राप्त किया I
आश्रम से जाने की आज्ञा लेने की लिए गुरुपत्नी अहल्या के पास पहुंचे I

महाभारत की कथा के अनुसार

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2974shikhat

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