देवराज इन्द्र और अग्नि देवता के सहयोग से, उत्तंग मुनि के दिव्य कुण्डलों का वापस मिलना
देवराज इंद्र की सहायता से महर्षि ने, नागलोक तक का मार्ग कुछ समय में ही बना लिया I उस मार्ग द्वारा नागलोक तक पहुंचने पर उन्होंने देखा कि, यह लोक हजारों योजन में फैला हुआ है I उसके चारों ओर की चहारदीवार दिव्य मणि मुक्ताओं से सजी हुई है I
वहां स्फटिक मणि की बनी हुई सीढ़ीयों से बनी हुई सुन्दर बावड़ियां है I निर्मल जल वाली अनेक नदियां और सुन्दर सुन्दर वृक्ष हैं I
नागलोक का बाहरी दरवाजा बहुत लम्बा और चौड़ा था I वहां कि विशालता और भव्यता देखकर उत्तंग मुनि कुछ समय के लिए हतोत्साहित हो गए I अब उन्हें एक बार फिर से,कुण्डल के वापस मिलने पर संदेह होने लगा I
उसी समय उनको निराश देखकर उनके पास एक अश्व (घोड़ा) आया I
उस अश्व की आँखें और मुख लाल था,और पूँछ सफ़ेद और काली थी I
वह अश्व अपने तेज से प्रज्ज्वलित हो रहा था I मुनि के पास आकर मनुष्य कि वाणी में कहने लगा I पुत्र मै तुम्हारी सहायता दिव्य कुण्डलों को वापस लाने में कर सकता हूँ I मेरी पीठ पर बड़ी जोर से फूंक मारो ,उससे तुम्हे तुम्हारे चोरी हुए कुण्डल मिल जायेंगे I ऐरावत का पुत्र तुम्हारे कुण्डल नागलोक में लेकर आया है I
उत्तंग मुनि के द्वारा सम्मान पूर्वक उस अश्व से, उसका परिचय पूछने पर उसने कहा I
मै तुम्हारे गुरु का गुरु “जातवेदा अग्नि’ हूँ I तुमने अपने गुरु के साथ रहकर मेरी भी विधिवत पूजा कि है I मै अवश्य ही तुम्हारा कल्याण करूँगा I
अब तुम मेरे बताये हुए कार्य को करने में विलम्ब मत करो I अग्निदेव के ऐसा कहते ही मुनि ने अश्व की पीठ पर बड़ी जोर से फूंक मारी I
मुनि के फूंक मारते ही अग्निधारी अश्व का, रोम रोम प्रज्वलित हो उठा और बड़ी जोर से धुआं उठने लगा I यह धुआं नागलोक को भयभीत करने वाला था I
वासुकि आदि मुख्य नागों के घर धुंए से ढक गए ,नागलोक में अँधेरा छाने लगा I
धुआं लगने से सभी की आँखें रक्त के समान लाल हो गयीं I
तब ब्रह्मतेज धारी मुनि के वहां आने का कारण और विचार जानने के लिए ,सभी नाग एक जगह इकट्ठा होना शुरू हो गए I
मुनि के वहां आने का कारण जानने के बाद, बुजुर्गों और बच्चों को आगे करके नाग बोले , भगवन ! हम आपका कुण्डल अभी लौटा देते हैं ,आप हम पर प्रसन्न होइये I
उसके बाद उत्तंग मुनि को उनके कुण्डल वापस मिल गए I
अग्निदेवता की विधिवत पूजा और परिक्रमा करके ,उत्तंग मुनि दिव्य कुण्डलों के साथ नागलोक से बाहर आये I
सावधानीपूर्वक अपनी आश्रम तक की यात्रा को, पूरी करने के बाद गौतम ऋषि के पास पहुंचे I
वहां पहुंचकर दिव्य कुण्डलों को गुरु माँ को सौपने के बाद आशीर्वाद लिया I
इसके बाद कुण्डलों के चोरी होने की घटना, अपनी नागलोक की यात्रा , इन्द्र भगवान और अग्नि देवता के द्वारा मिलने वाले सहयोग के बारे में बताने के लिए, गौतम ऋषि की कुटिया की तरफ बढ़ चले I