यह बात पूरे विश्व के द्वारा स्वीकार की हुई है कि, भारत अद्भुत सांस्कृतिक विरासत,सभ्यता और प्राकृतिक सुंदरता का खजाना है…..
इसी कारण आज से नही प्राचीन काल से हमारा देश, विदेशियों के आकर्षण का केंद्र रहा…..
अगर अमूल्य सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संपदा के बारे में सोचते हैं तो, नदियां इनसे अछूती नही रहती…..
नदियों में भी गंगा नदी और इसका उद्गम हिमालय, भारत की सबसे बड़ी पहचान और शान है….
हमारा देश भावनात्मक रूप से गंगा नदी से जुड़ा हुआ है….
गंगा को अलग-अलग नाम वेद पुराणों के जरिए ही मिले हुए हैं, जैसे आकाश गंगा, स्वर्ग गंगा,पाताल गंगा, हेमवती, भागीरथी, जाह्नवी, मंदाकिनी, अलकनंदा….
इन अलग-अलग नामों से पुकारी जाने वाली गंगा…. हिमालय के उत्तरी भाग गंगोत्री से निकलकर, भारत के अनेक सांस्कृतिक शहरों की यात्रा करते हुए गंगा सागर में समा जाती है….
गंगा देश की प्राकृतिक संपदा ही नही, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार है……
यह नदी अपने बहाव में अत्यंत विशाल उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं…..
सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी माना जाता है…..
गंगा के अनेक रूप हैं,अनेक गाथाएं हैं…..
स्वर्ग में अलकनंदा, पृथ्वी पर भागीरथी या जाह्न्वी, तथा पाताल में अधोगंगा के नाम से जानी जाती है….
यह एक ऐसी नदी है जो ,आध्यात्म की खोज में आते विदेशियों को भी अपने किनारों पर रोकती है……
एक बार गंगा की भव्य आरती, इसके कल-कल प्रवाह या इनके किनारों पर होने वाले आस्था
और भक्ति के मेले को……अगर किसी विदेशी ने आध्यात्म की नज़र से देख लिया….. तो वह गंगा की धारा से प्रभावित हुए बिना नही रह सकता…….
यही कारण है कि विदेशी साहित्य और, विदेशियों के हृदय में पुण्य दायिनी गंगा को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है…..
गंगा नदी के किनारों पर पौराणिक काल से, भोर और संध्या के समय वैदिक ऋचाओं के स्वर गूंजते रहे……
इनके किनारों पर बड़े बड़े साम्राज्य स्थापित हुए…..
सबसे बड़ी बात तो यह रही कि साहित्य भी गंगा नदी के प्रभाव से अछूता नही रहा……
गंगा के किनारे बसे हुए नगरों में रहने वाले जितने भी साहित्यकार और कवि हुए…..
उन सभी ने गंगा नदी के सम्मान में अपनी अपनी कलम चलाई…….
चाहे वो कालीदास का महाकाव्य हो या, तुलसीदास जी का महाकाव्य गंगा नदी से जुड़ा हुआ नज़र आता है….
मुस्लिम कवियों में रहीमदास की अपार श्रद्धा हिंदू धर्म में थी उन्होंने लिखा…..
अच्युत चरण तरंगिणी,शिव सिर मालति हाल
हरि न बंधायो सुरसुरी,कीजौ इंदव भाल।।
गंगा नदी के भारत भूमि में निवास को लेकर अनेक पौराणिक कहानियां कही गई हैं…..
ऐसा माना जाता है कि, गंगा का जन्म विष्णु भगवान के नख से हुआ……
इसके बाद ब्रहम्मा के कमंडल से होती हुई गंगा, भगवान शंकर की जटाओं में जा समायी…..
राजा भागीरथ के कठोर तप को सार्थक करना, गंगा का भारत की भूमि पर उतरने का उद्देश्य था…..
सगर के साठ हजार पुत्र जो ऋषि ताप के कारण भस्म हो गये थे, उनकी मुक्ति ही गंगा के भारत भूमि पर प्रवाहित होने का कारण बनी….यह एक महत्वपूर्ण पौराणिक साक्ष्य है….
आज के संदर्भ में और पौराणिक साक्ष्यों से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर सोचो तो, अटल हिमालय के ग्लेशियर भी पानी की ठोस अवस्था से गर्मी के कारण पिघलते हैं….
तमाम पहाड़ी वनस्पतियों के बीच में से होते हुए, ऊबड़-खाबड़ रास्तों को पार करते हुए पानी के द्रव रूप में स्वच्छ जलधारा का निर्माण गंगा नदी के रूप में होता है….
हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल दशमी को, गंगा के भारत भूमि पर आने का दिन माना जाता है….
इस दिन को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है….
गंगा के स्नान का महत्व इस दिन पुण्य देता है…..
ऐसी मान्यता है कि इस दिन सारी नदी और जलस्त्रोतों में गंगा का वास होता है…..
गंगा नदी का किनारा सूरज के आकाश में ढलते ही अलौकिक दिखता है…..
दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन देव दीवाली मनाई जाती है
इसका सबसे ज्यादा उत्साह बाबा विश्वनाथ की नगरी मे देखने को मिलता है..
गंगा के घाट दीपों की रोशनी से जगमगाते रहते हैं..
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था..
देव दीवाली के दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है ..
वेद पुराण और ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य के रूप मे ,कार्तिक पूर्णिमा को ही हुआ था..
गंगा की धारा के साथ बहते हुए टिमटिमाते दीपक ऐसा लगता है, मानो माध्यम बन गये हों लोगों के विश्वास और ईश्वर के बीच के….
इनके किनारों पर अहम् चकनाचूर होता हुआ दिखता है , क्योंकि यहां पर जीवन का सत्य दिखता है…..
गंगा के बहाव के साथ का शहर कोई भी हो, इनके किनारों पर बैठ कर, हर कोई शांत दिमाग से गंगा की भव्यता को महसूस कर सकता है….
लेकिन एक बात हमेशा व्याकुल करती है……
वैज्ञानिक शोध और परिणाम के अनुसार, गंगा के उद्गम पर कुछ ऐसी जड़ी बूटियां हैं जिनके स्पर्श करने से निकली गंगा धारा का जल सड़ता नहीं…..
फिर ये विकास के साथ गंगा का कैसा प्रवाह है… जो गंगोत्री से गंगासागर तक के सफर में, गंगा के जल को दूषित करता जाता है..
गंगा के घाटों पर दीपक प्रज्ज्वलित करते हुए,गंगा की लहरों पर दीपदान करते हुए, अपनी आस्था,धर्म और परंपराओं से जुड़ी हुई गंगा को देखते हुए दिमाग सोच मे पड़ जाता है।
ये हम सभी के लिए सोचने का विषय है…
क्योंकि कहा भी गया है कि गंगा जीवन तत्व है….
जीवन को देने वाली है,तरण तारिणी है….
बस इसीलिए मां है….
पौराणिक इतिहास इस बात का साक्षी है…..