अहिंसा धर्म की प्रशंसा और कथा ‘चिरकारी’ की
महाभारत की कथा अनुसार…..
मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते जा रहे थे।
ओह ! वो कपटी त्रिभुवन का स्वामी इंद्र, ब्राह्मण का वेश धरकर मेरे घर आया। मैंने ही उसका स्वागत और विधिवत पूजन कर अपने घर में आश्रय दिया। उसने अपनी विषय लोलुपता के कारण ऐसा काम किया। ईर्ष्या के कारण मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी।
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