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लोक गाथा के साथ सोन और नर्मदा नदी

by 2974shikhat April 3, 2024
by 2974shikhat April 3, 2024

सोन नदी पर किये हुए रिसर्च से सम्बंधित एक किताब को पढ़ते समय उसके बहाव ,व्यापार ,किनारों पर बसे हुए नगरों की संस्कृति के अलावा अनेक रोचक प्रसंग लोकगाथा के रूप में सामने आये। इन लोकगाथाओं को पढ़ने से यह समझ में आता है कि ,भारतीय संस्कृति में नदी ,पहाड़ जंगल, मानव जीवन से हमेशा ही जुड़े रहे हैं।

प्राचीन भारतीय साहित्य में सोन या शोण को मैकलसेतु भी कहा गया है। नर्मदा मैकलकन्या के रूप में प्रसिद्ध हैं। इससे सहज ही यह अनुमान लगता है कि ,नर्मदा और सोन दोनों का उद्गम स्थल या जन्म स्थान मैकल पर्वत ही है।
यह मैकल पर्वत है विंध्य – सतपुड़ा का संधि पर्वत। दक्षिण में काफी दूर तक की सतपुड़ा श्रृंखला मैकल के रूप मे जानी जाती है।
इसी मैकल के पश्चिमी छोर पर बसा हुआ है अमरकंटक।

अमरकंटक समुद्र से साढ़े तीन हजार फ़ीट की ऊंचाई पर है ,जहाँ से नर्मदा प्रवाहित होती है। नर्मदा और सोन नदी का उद्गम एक दुसरे के पास है इसका संकेत महाभारत मे भी है। छत्तीसगढ़ और बघेलखण्ड के मूल निवासियों मे एक लोकश्रुति प्रसिद्ध है कि, ब्रह्मा जी की आँखों से दो आंसू गिरे जिससे नर्मदा और सोन नदी का जन्म हुआ ।
कुछ लोकगाथाएँ ऐसी हैं जिन्हें शुभअवसर पर मंगलाचरण के रूप मे गाते भी हैं ,इन गाथाओं ने लोकगीतों का रूप ले लिया है।

लोकगाथा के अनुसार

” राजा मैकल ने निश्चय किया कि जो राजकुमार बकावली के फूल लाकर देगा ,राजकन्या नर्मदा का विवाह उसी के साथ होगा। राजपुत्र शोणभद्र राजा मैकल कि राजधानी अमरकंटक मे बकावली के फूल लाया तो सही ,लेकिन उसे कुछ देर हो गयी। फिर भी नर्मदा इस रूपवान राजकुमार के गुणों कि प्रशंसा सुन चुकी थी ,इसलिए उसने सोन से से ही ब्याह करने का निश्चय किया।
नर्मदा ने अपनी नाइन जोहिला को अपने मनोभावों के सन्देश के साथ शोणभद्र के पास भेजा। जोहिला कुरूप तो थी नही ,राजमहल कि नाइन थी। राजमहल के अनुरूप सजी – धजी थी। राजपुत्र शोणभद्र ,जोहिला को ही नर्मदा समझकर उससे हंसी मजाक करने लगे।
इधर जोहिला के वापस महल लौटने मे देरी होते देख ,नर्मदा जब विवाह मंडप मे पहुंची तो शोणभद्र और जोहिला को हंसीठट्ठा करते देख आगबबूला हो गयी।


क्रोध मे नर्मदाअमरकंटक के उस कुंड मे कूद गयी जिसे आजकल नर्मदा कुंड कहते हैं। वहां से नर्मदा पश्चिम कि ओर बहने लगी
उधर राजपुत्र सोन को जब स्थिति का भान हुआ तब वह दुखित हुआ लेकिन नर्मदा के व्यहवार से चिढ़ भी गया।

क्रोध मे अमरकंटक पहाड़ से वह भी कूदा और असफल प्रेमी की तरह वन -वन ,पहाड़ – पहाड़ मे भटकने के लिए विपरीत दिशा पूरब की तरफ बह चला। जोहिला नदी आगे चलकर दशरथ घाट मे सोन नदी से मिल गयी है ,इसलिए यह भी कहा जाता है कि सोन ने जोहिला से विवाह कर लिया। कहीं कहीं यह भी कहा जाता है कि स्वयं कुंड मे कूदने से पहले नर्मदा ने सोन को पहाड़ के नीचे ढकेल दिया और जोहिला की सूरत बिगाड़ दी ,दुःख और अपमान के कारन जोहिला की आँखों से नदी बह चली जिसे आजकल जोहिला नदी कहा जाता है।”

स्थानीय लोगों के शादी ब्याह के अवसर पर यह लोकगाथा ,लोकगीत के रूप मे जीवित हो जाती है।

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