वर्षा ऋतु के बाद की उमस, शरद ऋतु के आने की बात को सुबह और रात को तो बताती है,लेकिन दोपहर की चटकीली धूप, पसीने मे डुबोने की कोशिश करती नज़र आती है ।
गर्म मौसम की बात, एयर कंडीशनर की ठंडक से बाहर निकल कर,इंसान महसूस कर सकता है।मेरी इसीतरह के मिले जुले से मौसम मे की हुयी रेल यात्रा, जो ट्रेन के भीतर की तो,एयर कंडीशनर की थी। लेकिन ट्रेन की देरी ने मुझे मौसम की बेरुखी से रूबरू करा दिया।भारतीय रेल की दुखती रग से वाकिफ हर इंसान,ट्रेन की लेटलतीफी का किसी न किसी यात्रा मे शिकार होता है।
बात अगर इस तरह के मौसम मे दिन मे प्लेटफार्म पर ट्रेन के इंतजार की हो तो,एक एक पल बिताना भारी सा लगता है।प्लेटफार्म पर ट्रेन के इंतजार करते समय ,समय बिताने का तरीका हर किसी का जुदा होता है।
कोई प्लेटफार्म पर रखी हुई कुर्सियों पर चुपचाप बैठा नज़र आता है,कोई वेटिंग रूम की तलाश मे निकल जाता है।किसी ने रेलवे प्लेटफार्म पर ही चादर बिछा कर,आराम फरमा लिया। किसी ने टहलते घूमते हुये, ही समय बिता लिया। किसी ने स्वच्छ भारत अभियान की धज्जियाँ उड़ा दिया । पान ,गुटखा तम्बाखू के निशान को चारो तरफ दिखा दिया।
ट्रेन की आवाजाही को बताती हुई ,लेकिन लगातार बोलती हुई आवाज
सामान को बेचने वालों की कोशिश बेशुमार,स्वच्छ पेयजल वाले नलों से निकलने वाली घर्र घर्र घर्र की आवाज ।
इन्हीं के बीच मे आती हुई ट्रेन का शोर ,भीड़ का हल्ला गुल्ला और शोर गुल । सब कुछ आपस मे मिलजुल कर एक बेसुरा सा संगीत तब समझ मे आता है,जब यात्री पसीने मे डूबकररेलवे प्लेटफार्म पर ट्रेन का इंतजार करता हुआ नज़र आता है।ट्रेन की लेटलतीफी की बात को अगर एक तरफ कर दें तो,रेल यात्रा सुखद सी लगती है। जब भागती हुई रेल प्रकृति के बीच मे से गुजरती है ।
आज भी गाँवों और कस्बों के बीच मे से गुजरती हुई रेल को, कौतूहल से निहारते हुए बच्चों के समूह नज़र आते हैं ।आकाश मे दिन की रोशनी मे सूर्य तो, रात की रोशनी मे चंद्रमा रेल की खिड़कियों के बाहर से झाँकते हुए नज़र आते हैं ।रेल यात्रा के दौरान रास्तों मे, साथ मे सफर करते हुये यात्रियों का, सहयोगात्मक रवैया सफर खत्म होने के बाद भी याद आता है।
यात्रा के दौरान कभी कभी अनसुलझे से सवाल पहेली बनकर,दिमाग मे बस जाते हैं,जिनके उत्तर खोजने मे दिमाग भागादौड़ी करता रहता है।इतने वृहत अभियान के बाद भी “स्वच्छ भारत अभियान”जैसी बातें क्या कभी सफलता के आयाम को छू पायेंगी?रेल के डिब्बों के ऊपर भी ,स्वच्छ भारत अभियान की बात को बताता हुआ, गाँधी जी का चश्मा शांत भाव से बैठा, लेकिन हताश सा नज़र आ रहा था ।
दूसरी तरफ गाँव और कस्बों मे धड़ल्ले से होता हुआ पाँलीथीन का उपयोग,खेतों और रास्तों के किनारों पर इकट्ठा प्लास्टिक का कचरा, धरा की उर्वरता को आज नही तो कल जरूर प्रभावित करेगा।प्लेटफार्म पर हो या ट्रेन के अंदर,प्लास्टिक की पानी की बोतलें, चिप्स कुरकुरे के पैकेट,खाने के डिब्बे, चाय और पानी की गिलासों से लेकर तमाम छोटा बड़ा प्लास्टिक का कचरा इधर उधर बिखरा नज़र आता है।
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Bahut खूब