हर शाम चहचहाती है….
बच्चों की खिलखिलाहट कानों
को संगीतमय कर जाती है….
शाम की मंद मंद हवा के साथ-साथ
बच्चों की चहल पहल भी घूमने निकलती है….
चिड़ियों का कलरव शांत होते ही
बच्चों का उत्साह जगह जगह दिखता है….
पढ़ाई लिखाई से ध्यान हटाने के बाद
बच्चों का समूह उछलता कूदता दिखता है….
खेल भी इनके अलग अलग होते हैं….
हर उम्र के बच्चों के अपने अपने समूह होते हैं. …
हर बच्चा दिखता है व्यस्त….
हँसी ठिठोली करता हुआ
अपने आप मे मस्त…
कोई समूह सभ्यता और सलीके की मूर्ति दिखता…
तो कोई एक दूसरे से लड़ाई झगड़े के इरादे के साथ
आपस मे ही भिड़ता दिखता….
किसी कोने से आती फुसफुसाहट की आवाज…
तो किसी ने डाला होता है किसी के गले मे हाथ….
हर शाम का यही फ़साना होता है….
क्योंकि बच्चों को अपने अंदर संजो कर
रखी हुयी असीमित ऊर्जा को खपाना होता है….
अँधेरे मे छोटे छोटे बच्चे पहचान मे नही आ रहे थे….
क्योंकि कपड़े से लेकर मुँह तक धूल और मिट्टी मे
सराबोर नज़र आ रहे थे….
सारे बच्चे थे अपनी माँ की नज़रों से दूर…..
दिमाग मे था इन बच्चों के ,कुछ नया करने का फितूर….
आज कुछ अलग सा खेल खेलते हैं….
बगीचे की मिट्टी से कुछ नया
सृजन करते हैं….
दिमाग मे आया उनके इमारत के निर्माण का ख्याल….
सोच मे पड़ गया बाल मन और दिमाग….
सोचने के बाद हल निकल गया…
महल का निर्माण पल मे हो गया…
नन्हे हाथों और मिट्टी की सहायता से बना महल
कभी बन रहा था कभी गिर रहा था…..
देखते ही देखते बच्चों मे हो गयी लड़ाई…..
किसी ने आँसू टपकाये किसी ने
जीभ की ली सहायता और, आँखों को
मटका मटका कर की लड़ाई…..
थोड़ी ही देर मे घर से बुलावा आ गया…..
निर्माण कार्य मे व्यवधान आ गया….
थोड़ी देर पहले बना महल ढह गया…
क्योंकि आज का खेल युद्ध के साथ खत्म हो गया
नया निर्माण कल के लिए टल गया….
5 comments
वाह बेहतरीन
बच्चों की कल्पना का कोई, ओर छोर नही होता…शुक्रिया 😊
सही बात, और उनकी हर हरकत को सुन्दर शब्दों में व्यक्त करना भी आसान नही होता जो आपने किया।
वो शायद इसलिये क्योंकि मै खुद बच्चों की माँ हूँ और उनकी हरकतों से वाकिफ हूँ ।
जी , माँ से ज्यादा बच्चों को कौन जानेगा।
Comments are closed.