लय,ताल,ध्वनि और भाव
ये सभी जीवन की जरूरत होते हैं क्या?
एकाग्रता के साथ यदि मनुष्य
खुद में डूबता और उतराता है….
तो मनुष्य अपने शरीर के साथ
लय,ताल,ध्वनि के साथ भावों को
महसूस कर सकता है…..
मेरे विचार से शरीर के आंतरिक अंग भी
वाद्ययंत्रों के समान ही कार्य करते हैं…..
हृदय का स्पंदन हमेशा एक लय में होता है….
श्वासों का आना और जाना भी लय और ताल
का बोध कराते हैं……
मतलब हमारे फेफड़े भी लय के साथ कार्य करते
हुए समझ में आते हैं….
दूसरी तरफ दिमाग ध्वनि तरंगों को कानों के माध्यम से
महसूस कर पाता है…..
हमारा शरीर और मन बाह्य संगीत को सुनकर
भावों के साथ खड़ा नज़र आता है……
हर व्यक्ति का अपना स्वभाव और संगीत की
अपनी अपनी रुचि होती है…..
लेकिन निश्चित तौर पर अच्छा संगीत दिमाग की
उर्वरता को बढ़ाता नज़र आता है…..
कोई संगीत और वाद्ययंत्रों के साथ अपनी आत्मा की
गहराई से जुड़ जाता है…..
तो कोई सतही तौर पर सिर्फ मनोरंजन के इरादे से
संगीत को सुनता नज़र आता है……
पौराणिक कहानियों के अनुसार राग और साज़ की आवाज
असीमित शक्ति रखती थी……
सुर और ताल के साथ थिरकते हुए व्यक्ति को देखो तो
चेहरे पर आनंद का भाव दिखता है……
अच्छा संगीत श्रवण इंद्रियों के माध्यम से
मानव मन और शरीर के लिए औषधि होता है…..
ऊपर वाले की आराधना में भी भावों के साथ
संगीत का स्थान सर्वोपरि होता है…..
चाहे वो लयात्मकता के साथ किया गया मंत्रोच्चार हो
या ईश्वर की आरती ……
समझ में नहीं आती कभी कभी यह बात
कि आराधना और संगीत में
क्यूं घनिष्ठ संबंध होता है……
कहीं भजन कीर्तन के जरिए आराधना तो
कहीं सूफी संगीत या कव्वाली…..
कहीं शबद कीर्तन के जरिए आराधना तो
कहीं प्रार्थना के जरिए सिर झुकते हैं…..
ये उपर वाले के अलग-अलग रुप भी क्या
भावनाओं को संगीत के जरिए परखते हैं…..
निश्चित तौर पर अच्छा संगीत मन और दिमाग को
चेतना से भरता है…..
व्यक्ति खुद को विचारों के मकड़जाल से
बाहर निकालकर आगे बढ़ता है…….
(सभी चित्र इन्टरनेट से)
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Wonderful posts
Thanks😊