(चित्र दैनिक जागरण के द्वारा )
मनुष्य जीवन को जीने की जद्दोजहद मे
लगा रहता है….
बचपन से बड़े तक या तो घर को सजाने मे या
बनाने मे जुटा होता है……
घर भी व्यक्ति की आर्थिक क्षमता के
अनुसार बने होते हैं…..
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कहीं महल कहीं फ्लैट तो कहीं झुग्गी झोपड़ियों
मे भी सजे होते हैं……
सर के ऊपर छत सुरक्षा का एहसास कराती है…..
तमाम तरह की प्राकृतिक आपदाओं
से हमे बचाती है……
प्रकृति का दिया हुआ सर्द मौसम अपने साथ
बर्फीली हवायें और रुई के फाहों सी
बर्फ को भी लाता है…….
देश के कई हिस्सों को जर्बजस्त सर्दी से
ठिठुराता हुआ अस्तव्यस्त कर जाता है…..
ऐसी अकड़न वाली सर्दी मे इंसान अपने आप को
कपड़ों की तहों के बीच मे लपेटता है…..
ज़रा सा सीमित से दायरे मे खुद को समेटता है……
सिर के ऊपर छत देखकर आश्वस्त हो जाता है…..
हमारे सैनिक कितनी विपरीत परिस्थितियों मे
अपने जीवन को जीते हैं…..
ठिठुरती हुई सर्दी हो या बर्फ की मोटी परतें……
उनके बीच मे भी देश की सुरक्षा मे लगे होते हैं……
इनकी मेहनत और देशभक्ति के जज़्बे को
हम भूल नही सकते…..
सीमा पर तैनात प्रहरियों की तरह सामान्य
व्यक्ति रह नही सकते……
ये हमारी सुरक्षा की छत ही तो होते हैं……
खुद सरहदों पर खड़े होकर हमे सुरक्षित
होने का एहसास कराते हैं……
कितनी विपरीत परिस्थितियों मे रहकर
अपने परिवार का भरण-पोषण और हमारी
सुरक्षा का काम करते हैं……
जरूरत पड़ने पर शहीद होने से भी नही डरते…..
सेना और सैनिकों के बारे मे लिखने का सोचो तो
कलम भी अपना उत्साह दिखाती है…..
देशभक्ति के जज़्बे के साथ कागज पर
उछल कूद मचाती है…..
सियाचिन का ग्लेशियर हो या रेत से भरा रेगिस्तान……
हिली हो धरती या बाढ़ के कारण मचा हो हाहाकार…..
वो सैनिक ही तो होता है जो सरहदों को सँभालने के
साथ साथ लोगों की मदद के लिए आगे बढ़ चला….
इसी बात पर सैनिकों के जज़्बे को करते हैं सलाम….
अपनी इस कविता को करती हूँ
देशभक्त सैनिकों के नाम….